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उलझन

जानती हूँ
या कहो
बखूबी समझती हूँ
तुम्हारे चुपचाप रहने का सबब
हमारे बीच समझ का
जो अनकहा पुल है
कभी सच्चा लगता है और
कभी दिवास्वप्न सा
दुविधा की कई बातें हैं
जज्बातों की कई सौगाते भी हैं
जो अकेले बैठ के
अपने मन मंदिर में
कोमल अहसासों से पिरोयें हैं
साझा करने को कभी
पुल के इस पार तो आओ
दो बातें तो कर जाओ
जानती हूँ तुम्हें
या नहीं जानती की
उलझन तो सुलझा जाओ

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Comment by LOON KARAN CHHAJER on December 7, 2012 at 3:01pm

.उलझन ! 
बहुत सुन्दर रचना .
आज हर व्यक्ति  उलझन में है,
उलझन तो सुलझा जाओ !
बहुत खूब महिमा जी .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 7, 2012 at 9:57am

आत्मीय संबंधों में संवाद की जरूरत ही नहीं होती...एक सुकून भरी खामोशी, अनकहा वायदा,  एकत्व का एहसास....

पर भौतिकता की तरफ दृष्टि होते ही, एक दुविधा, की यह एहसास सत्य है या भ्रम...

और इस उलझन को सुलझाने के लिए शब्दिकता की आवश्यकता..

इन सुन्दर भावों को अभिव्यक्ति में बहुत खूबसूरती से पिरोया है प्रिय महिमा जी,

हार्दिक बधाई..

मंच पर आपकी जुगनू सी चमक के दीप बनने की मंगल कामनाएं. सस्नेह.

Comment by vijay nikore on December 6, 2012 at 8:35pm

आदरणीया महिमा जी,

मार्मिक भावों से भरपूर आपकी कविता मन को छू गई।

विजय निकोर

Comment by राजेश 'मृदु' on December 6, 2012 at 5:29pm

करीने से लिखी गई रचना के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by MAHIMA SHREE on December 6, 2012 at 2:34pm

नमस्कार अनंत जी ..

आपका स्वागत है / आपका ह्रदय से आभारी हूँ / सहयोग बनाएं रखे

Comment by MAHIMA SHREE on December 6, 2012 at 2:31pm

आदरणीय लक्ष्मण  सर ,सादर नमस्कार ..

रचना को सराहने के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ / स्नेह बनाएं रखे

Comment by MAHIMA SHREE on December 6, 2012 at 2:28pm

आदरणीय सौरभ सर . सादर नमस्कार ..

ये मेरा सौभाग्य है ..जो आप गुरुजनों का स्नेह और आशीर्वाद हमेशा मिलता रहता है /

आपके वाह!! ने तो इस रचना को  जो मान दिया है उसकी ख़ुशी मैं बयाँ नही कर सकती / आगे भी प्रोत्साहन मिलता रहेगा यही आशा है/ आपका हार्दिक आभार / सधन्यवाद

 

Comment by MAHIMA SHREE on December 6, 2012 at 2:20pm

आदरणीय नादिर जी , नमस्कार

रचना आपको पसंद आई .. ह्रदय से आभारी हूँ / सहयोग बनाएं  रखे /

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 6, 2012 at 11:50am

बेहद सुन्दरता से शब्दों में पिरोई खूबसूरत प्रस्तुति बधाई स्वीकारें

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 6, 2012 at 10:40am

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति की लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे महिमा श्रीजी 

कृपया ध्यान दे...

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