For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सस्ता के चक्कर में !

घरनी गाड़ी में बैठाया , चली ट्रेन पकड़ी रफ्तार ।
प्लेटफार्म आस पास घर है , किसी बात की ना दरकार ।
वापस गया काम पर अपने , पहुँचेगी अकेल इस बार ।
जनरल डिब्बा भीड़ भारी, गर्मी से थे सब लाचार ।
बाहर हवा अंदर पसीना , सीट की चाहत बेकरार ।
मुंबई से इटारसी रुकी , केले वालों की भरमार ।
सस्ता खोजते चली आगे , केला मिला बहुत बेकार ।
दुःखी मन फिर गाड़ी भूली , बैठी गाड़ी में मनमार ।
झोला झाकड़ लगी खोजने , लगी पूछने हो लाचार ।
अनपढ़ को मिले तमिल यात्री , जाने कैसे बात गँवार ।
सभी खायें देख वो तरसे , पकड़े तब पेट बार बार ।
अंजान को बस कौन पूछे , आस लगा सोचे लाचार ।
मद्रास जब रुक गयी गाड़ी , उतरी झट पट हो लाचार ।
कहाँ आयी देख अंजाना , दौड़ दौड़ पूछे बार बार ।
भाषा ना जब जाने कोई , सब ही जानें पागल नारि ।
सुबह पूछते शाम हो गयी , बिकल क्षुधा हुआ बेकरार ।
तमिल साधु मिल दिया आसरा , साथ गयी मंदिर दरबार ।
लगी बनाने सब का भोजन , नौ साधु चलाते घर बार ।
साधु घुमें जा कर गलियों में, दिन भर खाना बनता झार ।
एक बोला देखो सलोनी , अब मिल चलायें संसार ।
इशारे से हाथ वो पकड़ा , युवती रोती रही अपार ।
जबरन अपना चाल चलाया , चुप मस्ती करे बार बार ।
रो रो करती रात गुजारा , साधु गाये साथ मल्हार ।
दूसरे तीसरे ने देखा , सब की नियत रही हकदार ।
बारी बारी आते सारे , बिगड़ गया उनका व्यवहार ।
कहाँ जाये छूट चंगुल से , रोती होती बस लाचार ।
रोती भाग चली मंदिर से , सूना था मंदिर घर बार ।
राह में मिली एक भिखारन , हिन्दी जानती धुवाँधार ।
तरुवर के शीतल छाया में , हाल पूछी बन समझदार ।
रोते रोते हाल सुनायी , सुन सुन व्यथा बढ़े हर बार ।
आज बारह साल गुजरा था , सुन भिखारन रोयी अपार ।
ले कर गयी साथ घर अपने , बहुत किया आदर सत्कार ।
बोली बेटी सब भूला जाओ , अब मान जा चला घर बार ।
उसको गाड़ी में बैठायी , घर को चली रो बार बार ।
सास ससुर घर से निकाले , रखने से करते इन्कार ।
रोते रोते मायके आयी , माँ बाप सुन हुए लाचार ।
पाती भेजा परदेशी को , झट पहुँचा होत बेकरार ।
घरनी रोते हाल सुनायी , मिल कर खुशी हुई बेदार ।
वापस घर लाया हिल मिल के , माँ बाप मिला के संसार ।
वर्मा सस्ता के चक्कर में , कितना दुःख मिला हर बार ।
श्याम नारायण वर्मा

Views: 471

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 1, 2012 at 8:08pm

वर्मा सस्ता के चक्कर में , कितना दुःख मिला हर बार । बहुत उम्दा || सस्ते के फेर में कितना नुकसान कर जाते हैं 

Comment by seema agrawal on December 1, 2012 at 12:31pm

बहुत बढ़िया .........श्याम जी 

पर सौरभ जी का सवाल अभी तक अनुत्तरित है//आप रचनाओं में गेयता के लिये क्या करते हैं ?//

एक विज्ञापन आता है जिसमे सहेली, सहेली से बार-बार पूछती है कि बच्चे को तीन बार दूध तो देती हो पर कैल्शियम के लिए क्या करती हो ....भाई जी विटामिन डी के बिना तो कैल्शियम कितना भी लो सब  waste हो जाता है |

Comment by shalini kaushik on November 28, 2012 at 9:43pm
shyam ji bilkul satya likh diya hai aapne..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 28, 2012 at 7:59pm

वीर छंद पर आपका प्रयास हो रहा है.

एक प्रश्न, आप रचनाओं में गेयता के लिये क्या करते हैं ? कारण कि, महज मात्रा गिन कर छंदों के चरण नहीं साध लिए जाते.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
21 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service