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गिरती दीवारें सूने खलिहान है

गिरती दीवारें सूने खलिहान है
गावों की अब यही पहचान है

चौपालों में बैठक और हंसी ठट्ठे
छोटे छोटे से मेरे अरमान है

जनता के हाथ आया यही भाग्य है
आँखों में सपने और दिल परेशान है

लें मोती आप औरों के लिये कंकड़
वादे झूठे मिली खोखली शान है

हम निकले हैं सफर में दुआ साथ है
मंजिल है दूर रस्ता बियाबान है

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Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on November 16, 2012 at 7:35pm

सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकार करें नादिर साहब!

Comment by PHOOL SINGH on November 16, 2012 at 5:48pm

नादिर जी नमस्कार.....

बहुत ही सुंदर  रचना....बधाई....

फूल सिंह

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