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ग़ज़ल - वो मेरी शख्सियत पर छा गया तो

एक ताज़ा ग़ज़ल पेश ए खिदमत है गौर फरमाएं -

वो मेरी शख्सियत पर छा गया तो | 
ये सपना है, मगर जो सच हुआ तो |

दिखा है झूठ में कुछ फ़ाइदा तो |
मगर मैं खुद से ही टकरा गया तो |

मुझे सच से मुहब्बत है, ये सच है,
पर उनका झूठ भी अच्छा लगा तो |

शराफत का तकाज़ा तो यही है,
रहें चुप सुन लिया कुछ अनकहा तो |

करूँगा मन्अ कैसे फिर उसे मैं,
दिया अपना जो उसने वास्ता तो |

रहीम इस बार तो 'कुट्टी' न होना,
अगर मैं राम से 'मिल्ली' हुआ तो |

रकीबों में वो गिनता है मुझे और,
  गले भी लग गया मुझसे मिला तो |

वो रहमत कर रहे हैं सिर्फ मुझ पर, 
कहीं दिल कहर ढाने का हुआ तो |

हमें बस शायरी का शौक है, पर, 
यही इक शौक भारी पड़ गया तो |

वो मानेगा मेरी बातें, ये सच है,
करेगा दिल की ही ज़िद पर अड़ा तो |

जरूरत से जियादः टोकते हैं,
कोई दिखला गया गर आईना तो |

लगा रहता है मुझको डर बराबर
मेरा हर शे'र उनको भा गया तो |


खुले हो जिस तरह तुम उनसे 'वीनस',
अचानक तोड़ लें वह राबिता तो |

बने हो यूँ तो आतिशदान 'वीनस',
डरे भी हो धुँआ उठने लगा तो |

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Comment

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Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on October 23, 2012 at 8:47pm

रहीम इस बार तो 'कुट्टी' न होना,
अगर मैं राम से 'मिल्ली' हुआ तो

वाह भाई वाह.. इस एक शे'र ने क्या गहरा असर किया क्या बताऊँ! बहुत ख़ूब..

-------------

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 23, 2012 at 3:44pm

आदरणीय वीनस जी, बेहद खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है आपने, हर शेर एक दास्ताँ हैं, हार्दिक बधाई प्रेषित है, स्वीकार करे.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 23, 2012 at 11:20am

मुझे भी शौख़ है लिखने का ग़ालिब
हुआ क्या गर मैं चर्चित न हुआ तो.....

मुझे भी शौख़ है लिखने का ग़ालिब
हुआ क्या मैं अचर्चित ही रहा तो.....

Comment by Anil chaudhary "sameer" on October 23, 2012 at 11:04am

आपके प्रत्येक शेर में गहरे भाव हैं,
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी,
राबिता शब्द का अर्थ मुझे नहीं पता कृपया मुझे उससे अवगत कराएं.
मुझे भी शौख़ है लिखने का ग़ालिब
हुआ क्या गर मैं चर्चित न हुआ तो.....
बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिए आपको बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 23, 2012 at 9:57am

दर्शन, सम्बन्ध, समाज, उच्चाकांक्षा, झिझक, हठ क्या-क्या नहीं बाँध लिया है आपने अपनी इस ग़ज़ल में ! वाह ! वीनसजी, यह आपके रदीफ़ का कमाल है कि पाठक को कहीं झल्लाहट से पाला पड़ता है, तो कहीं मन के ऊहापोह को शब्द मिला दीखता है; तो कहीं अदम्य विश्वास उपट कर छलका हुआ दीखता है.

शराफत का तकाज़ा तो यही है, /रहें चुप सुन लिया कुछ अनकहा तो   इस शेर में अंतरधार की तरह बहती हुई ढोंगी अन्यमनस्कता साझा हुई है जो आज के समाज की अकर्मण्यता को बखूबी शब्द देती है. उधर, ’कट्टी-मिल्ली’ को तो जिस महीनी से निभाया गया है यह शेर की कहन को अनकही ऊँचाई देने के साथ-साथ वह निर्वहन आज के समाज में तारी हो रहे मनोभाव को भी बखूबी सामने लाता है. मासूम शब्दों से ठोस आधार के शेर कैसे कहे जाते हैं बानगी है यह शेर.

एक नया अंदाज़ देख रह हूँ, बधाई.. .बहुत-बहुत बधाई..

Comment by राज़ नवादवी on October 23, 2012 at 9:50am

आजकल हमें एक ही चीज़ नज़र आती है- बह्र/वज़न क्या है, और मुझे बड़ी खुशी हुई जब मैंने खुद की कोशिशों से पहचान लिया-//मफाईलुन (१२२२), मफाईलुन (१२२२) मफाईलुन (१२२२) फऊलुन (१२२)//. और ये भी कि बहरे हज़ज़ मुसम्मन है, पर आगे नहीं मालूम पड़ा. खैर, सालिम तो नहीं, पर क्या? आप रहनुमाई करेंगे. 

ये तो मेरी तिफ्लाना तजस्सुस (जिज्ञासा) का नतीजा है. मगर जनाब वीनस जी बहुत खूब- //हमें बस शायरी का शौक है, पर, यही इक शौक भारी पड़ गया तो//. बधाई हो. सादर. 

 

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