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सप्त पदी को पार करेंगे (०९-१०-२०१२)

 

हाथ थाम कर साजन सजनी सप्त पदी को पार करेंगे,

वचन बद्ध हो प्रिय चितवन का हर रस अंगीकार करेंगे...

 

चंचल चित्त माधुरी शोखी

और कभी गहरी ख़ामोशी,

प्रिय की हर इक भाव लहर से

अपना नव शृंगार करेंगे...

हाथ थाम कर साजन सजनी सप्त पदी को पार करेंगे,

वचन बद्ध हो प्रिय चितवन का हर रस अंगीकार करेंगे...

 

प्रिय के हिय में मुस्काएंगे

नयन प्रीति भर इतरायेंगे,

कर्म क्षेत्र में धर्म मार्ग का

निष्ठावत आचार करेंगे...

हाथ थाम कर साजन सजनी सप्त पदी को पार करेंगे,

वचन बद्ध हो प्रिय चितवन का हर रस अंगीकार करेंगे...

 

अपनी राहों को मोड़ेंगे

प्रिय की मंजिल से जोड़ेंगे,

नव जीवन शैली में ढल कर

नव चिंतन स्वीकार करेंगे...

हाथ थाम कर साजन सजनी सप्त पदी को पार करेंगे,

वचन बद्ध हो प्रिय चितवन का हर रस अंगीकार करेंगे...

 

मृदु वचनों से सिंचित करके

प्रिय अँगना के नाजुक रिश्ते,

कंटक के सब बंध तोड़कर

अविरल सी रसधार करेंगे...

हाथ थाम कर साजन सजनी सप्त पदी को पार करेंगे,

वचन बद्ध हो प्रिय चितवन का हर रस अंगीकार करेंगे...

 

साजन सजनी सच्चे साथी

रौशन जैसे दीपक बाती,

श्रद्धामृत से निज हृदयों में

सभ्य सृजन विस्तार करेंगे...

हाथ थाम कर साजन सजनी सप्त पदी को पार करेंगे,

वचन बद्ध हो प्रिय चितवन का हर रस अंगीकार करेंगे...

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 10, 2012 at 11:21am

आदरणीय संदीप जी, 

इस रचना को आपने सराहा इस हेतु हार्दिक आभार आपका 

मुझे लगता है,कि आज सप्तपदी  को पार करना दुष्कर इसलिए प्रतीत होता  है, क्योंकि, हम वचन निर्वाह की अपेक्षा सिर्फ साथी से करते हैं, ये वचन दोनों को समरूप निभाने होते है... यदि दोनों साथी अपने हिस्से की वचनबद्धता निर्वहन करे, तो यह सप्तपदी यकीनन सबसे सुन्दर राह है.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 10, 2012 at 11:13am

आदरणीय डॉ. प्राची जी सादर नमन
बहुत उत्तम रचना रची है आपने
यदि सब इतना सुन्दर और अविरल रहा तो
निश्चित ही सप्त पदी को पार करना दुष्कर नहीं अपितु सुखकर हो जायेगा
आजकल सप्तपदी पार नहीं कर पा रहे हैं लोग
स्वयं को ही कहीं न कहीं वर्गला कर नाखुश हैं
लेकिन ये स्वपन साकार हुआ तो राह आसान हो जायेगी
 बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 10, 2012 at 11:09am

आ. लक्ष्मण प्रसाद लाडिवाला जी, इस रचना निहित भाव आपको पसंद आये इस हेतु हार्दिक आभार.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 10, 2012 at 10:01am

प्रिय के हिय में मुस्काएंगे,नयन प्रीति भर इतरायेंगे

कर्म क्षेत्र में धर्म मार्ग का,निष्ठावत आचार करेंगे...       ---सर्वोत्तम 

श्रद्धामृत से निज हृदयों में,सभ्य सृजन विस्तार करेंगे...

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति आभार आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी 

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