"लिखते लिखते"
जमीं पे चाँद तारे
सूरज
सब हैं दिखते
लिखते लिखते
नदियाँ, पहाड़, झरने
हाथी-घोड़ा
शेर, भालू, हिरने
कभी सजर
कभी जड़
कभी फल
तो कभी दीमक
दीमक
कैसा सच है दीमक का
शनैः शनैः चांट जाती है
सारा का सारा दरख्त
खोखला कर देती है
भीतर से
बहार से खूबसूरत सजर
भीतर ही भीतर
दम तोड़ देता है
वैसे ही
जैसे
अपशब्द और अशोभनीय
भाषाशैली
साहित्य के आदित्य पे ग्रहण
घोर अन्धकार
हर ओर
किन्तु अंधापन भाता है
कुछ चापलूसों को
चाटुकारों को
उन्हें रौशनी की जरुरत है
वैसे ही
जैसे
घोर अन्धकार को चाहिए हो
अगरबत्ती का उजाला
खुशबूदार धुंध
हकीकत से परे
भक्ति में लीन
भक्त शैतान भगवान्
सब दिखते
आदमी छोड़ के
लिखते लिखते
संदीप पटेल "दीप"
Comment
आपका स्वागत है भाई संदीप जी |
घोर अन्धकार को चाहिए हो
अगरबत्ती का उजाला
खुशबूदार धुंध
हकीकत से परे
भक्ति में लीन
भक्त शैतान भगवान्
सब दिखते
आदमी छोड़ के
लिखते लिखते
बहुत खूब ! संदीप कुमार पटेल जी , सुन्दर अभिव्यक्ति
आदरणीय सौरभ सर जी , आदरणीय अम्बरीश सर जी सादर प्रणाम आप दोनों को
आप दोनों की आशीर्वाद स्वरूपा प्रतिक्रिया से मन गद गद हो गया
तदोपरांत मैं कहना चाहूँगा के
"अगरबत्ती का उजाला"
अर्थात वो उजाला जो केवल अगरबत्ती तक ही सीमित हो
अर्थात दूसरों के लिए वो उजाला व्यर्थ है या है ही नहीं
जो व्यक्ति चाटुकारिता का अंधापन जी रहा हो
उसे ऐसा ही उजाला चाहिए
आप दोनों श्रेष्ठ गुरुजनों और विज्ञों ने मुझे अपने ज्ञान से आलोकित किया इसके लिए मैं नित आपका आभारी हूँ
अपना स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार
आदरणीय अलबेला सर जी सादर प्रणाम
आपने मेरी रचना को समय दिया और सराहा भी
इसके लिए मैं आभारी हूँ
अनुज पर ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर जी
आदरणीय रक्ताले सर जी सादर नमन
आपकी सराहना मिली शाब्दिक सार्थकता और बल मिला लेखन को
अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार
आदरणीय लक्ष्मण सर जी सादर प्रणाम
आपको रचना के भाव पसंद आये और आपकी सराहना मिली
आपका हार्दिक धन्यवाद सहित सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
रचना का कथ्य गहन है. तदनुरूप शिल्प भी होना था. एक समझ को साझा करती रचना के लिये बधाई, संदीप भाई.
आदरणीय अम्बरीषभाईजी के कहे को मेरा भी अनुमोदन है. चूँकि प्रस्तुत रचना अतुकांत शैली की एक वैचारिक रचना है अतः भाव-संप्रेषण तार्किकता की कसौटी पर भी खरा उतरे.
प्रस्तुति हेतु पुनः हार्दिक बधाई.. .
//अपशब्द और अशोभनीय
भाषाशैली
साहित्य के आदित्य पे ग्रहण
घोर अन्धकार
हर ओर
किन्तु अंधापन भाता है
कुछ चापलूसों को
चाटुकारों को
उन्हें रौशनी की जरुरत है
वैसे ही
जैसे
घोर अन्धकार को चाहिए हो
अगरबत्ती का उजाला
क्या बात है संदीप जी ..बहुत खूब ....मगर अगरबत्ती में उजाला ????
//हकीकत से परे
भक्ति में लीन
भक्त शैतान भगवान्
सब दिखते
आदमी छोड़ के
लिखते लिखते //
अति सुन्दर व सार्थक बेहतरीन अभिव्यक्ति ....बधाई मित्रवर |
वाह वाह
अपशब्द और अशोभनीय
भाषाशैली
साहित्य के आदित्य पे ग्रहण
घोर अन्धकार
हर ओर
किन्तु अंधापन भाता है
कुछ चापलूसों को
चाटुकारों को
उन्हें रौशनी की जरुरत है
__बहुत खूब !
जैसे
घोर अन्धकार को चाहिए हो
अगरबत्ती का उजाला
खुशबूदार धुंध
हकीकत से परे
भक्ति में लीन
भक्त शैतान भगवान्
सब दिखते
आदमी छोड़ के
लिखते लिखते
वाह! आदरणीय संदीप जी बहुत सुन्दर रचना हार्दिक बधाई.
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