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"लिखते लिखते"

जमीं पे चाँद तारे
सूरज 
सब हैं दिखते
लिखते लिखते
नदियाँ, पहाड़, झरने
हाथी-घोड़ा
शेर, भालू, हिरने
कभी सजर
कभी जड़
कभी फल
तो कभी दीमक 
दीमक
कैसा सच है दीमक का
शनैः शनैः चांट जाती है
सारा का सारा दरख्त
खोखला कर देती है
भीतर से
बहार से खूबसूरत सजर
भीतर ही भीतर
दम तोड़ देता है
वैसे ही
जैसे
अपशब्द और अशोभनीय
भाषाशैली
साहित्य के आदित्य पे ग्रहण
घोर अन्धकार
हर ओर
किन्तु अंधापन भाता है
कुछ चापलूसों को
चाटुकारों को
उन्हें रौशनी की जरुरत है
वैसे ही
जैसे
घोर अन्धकार को चाहिए हो 
अगरबत्ती का उजाला
खुशबूदार धुंध
हकीकत से परे
भक्ति में लीन
भक्त शैतान भगवान्
सब दिखते
आदमी छोड़ के
लिखते लिखते

संदीप पटेल "दीप" 

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Comment

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 13, 2012 at 10:59am

आपका स्वागत है भाई संदीप जी |

Comment by Yogi Saraswat on September 13, 2012 at 10:53am

घोर अन्धकार को चाहिए हो 
अगरबत्ती का उजाला
खुशबूदार धुंध
हकीकत से परे
भक्ति में लीन
भक्त शैतान भगवान्
सब दिखते
आदमी छोड़ के
लिखते लिखते

बहुत खूब ! संदीप कुमार पटेल जी , सुन्दर अभिव्यक्ति

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 13, 2012 at 10:06am

आदरणीय सौरभ सर जी , आदरणीय अम्बरीश सर जी सादर प्रणाम आप दोनों को
आप दोनों की आशीर्वाद स्वरूपा प्रतिक्रिया से मन गद गद हो गया
तदोपरांत मैं कहना चाहूँगा के
"अगरबत्ती का उजाला" 
अर्थात वो उजाला जो केवल अगरबत्ती तक ही सीमित हो
अर्थात दूसरों के लिए वो उजाला व्यर्थ है या है ही नहीं
जो व्यक्ति चाटुकारिता का अंधापन जी रहा हो
उसे ऐसा ही उजाला चाहिए

आप दोनों श्रेष्ठ गुरुजनों और विज्ञों ने मुझे अपने ज्ञान से आलोकित किया इसके लिए मैं नित आपका आभारी हूँ
अपना स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये

आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 13, 2012 at 10:00am

आदरणीय अलबेला सर जी सादर प्रणाम
आपने मेरी रचना को समय दिया और सराहा भी
इसके लिए मैं आभारी हूँ
अनुज पर ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर जी

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 13, 2012 at 9:58am

आदरणीय रक्ताले सर जी सादर नमन
आपकी सराहना मिली शाब्दिक सार्थकता और बल मिला लेखन को
अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 13, 2012 at 9:57am

आदरणीय लक्ष्मण सर जी सादर प्रणाम
आपको रचना के भाव पसंद आये और आपकी सराहना मिली
आपका हार्दिक धन्यवाद सहित सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 13, 2012 at 8:23am

रचना का कथ्य गहन है. तदनुरूप शिल्प भी होना था. एक समझ को साझा करती रचना के लिये बधाई, संदीप भाई.

आदरणीय अम्बरीषभाईजी के कहे को मेरा भी अनुमोदन है. चूँकि प्रस्तुत रचना अतुकांत शैली की एक वैचारिक रचना है अतः भाव-संप्रेषण तार्किकता की कसौटी पर भी खरा उतरे. 

प्रस्तुति हेतु पुनः हार्दिक बधाई.. .

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 10:48pm

//अपशब्द और अशोभनीय
भाषाशैली
साहित्य के आदित्य पे ग्रहण
घोर अन्धकार
हर ओर
किन्तु अंधापन भाता है
कुछ चापलूसों को
चाटुकारों को
उन्हें रौशनी की जरुरत है
वैसे ही
जैसे
घोर अन्धकार को चाहिए हो 
अगरबत्ती का उजाला

क्या बात है संदीप जी ..बहुत खूब ....मगर अगरबत्ती में उजाला ????

//हकीकत से परे
भक्ति में लीन
भक्त शैतान भगवान्
सब दिखते
आदमी छोड़ के
लिखते लिखते //

अति सुन्दर व सार्थक बेहतरीन अभिव्यक्ति ....बधाई मित्रवर |

Comment by Albela Khatri on September 12, 2012 at 10:18pm

वाह वाह
अपशब्द और अशोभनीय
भाषाशैली
साहित्य के आदित्य पे ग्रहण
घोर अन्धकार
हर ओर
किन्तु अंधापन भाता है
कुछ चापलूसों को
चाटुकारों को
उन्हें रौशनी की जरुरत है
__बहुत खूब !

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 12, 2012 at 7:42pm

जैसे
घोर अन्धकार को चाहिए हो 
अगरबत्ती का उजाला
खुशबूदार धुंध
हकीकत से परे
भक्ति में लीन
भक्त शैतान भगवान्
सब दिखते
आदमी छोड़ के
लिखते लिखते
वाह! आदरणीय संदीप जी बहुत सुन्दर रचना हार्दिक बधाई.

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