For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"लिखते लिखते"

जमीं पे चाँद तारे
सूरज 
सब हैं दिखते
लिखते लिखते
नदियाँ, पहाड़, झरने
हाथी-घोड़ा
शेर, भालू, हिरने
कभी सजर
कभी जड़
कभी फल
तो कभी दीमक 
दीमक
कैसा सच है दीमक का
शनैः शनैः चांट जाती है
सारा का सारा दरख्त
खोखला कर देती है
भीतर से
बहार से खूबसूरत सजर
भीतर ही भीतर
दम तोड़ देता है
वैसे ही
जैसे
अपशब्द और अशोभनीय
भाषाशैली
साहित्य के आदित्य पे ग्रहण
घोर अन्धकार
हर ओर
किन्तु अंधापन भाता है
कुछ चापलूसों को
चाटुकारों को
उन्हें रौशनी की जरुरत है
वैसे ही
जैसे
घोर अन्धकार को चाहिए हो 
अगरबत्ती का उजाला
खुशबूदार धुंध
हकीकत से परे
भक्ति में लीन
भक्त शैतान भगवान्
सब दिखते
आदमी छोड़ के
लिखते लिखते

संदीप पटेल "दीप" 

Views: 643

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 13, 2012 at 10:59am

आपका स्वागत है भाई संदीप जी |

Comment by Yogi Saraswat on September 13, 2012 at 10:53am

घोर अन्धकार को चाहिए हो 
अगरबत्ती का उजाला
खुशबूदार धुंध
हकीकत से परे
भक्ति में लीन
भक्त शैतान भगवान्
सब दिखते
आदमी छोड़ के
लिखते लिखते

बहुत खूब ! संदीप कुमार पटेल जी , सुन्दर अभिव्यक्ति

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 13, 2012 at 10:06am

आदरणीय सौरभ सर जी , आदरणीय अम्बरीश सर जी सादर प्रणाम आप दोनों को
आप दोनों की आशीर्वाद स्वरूपा प्रतिक्रिया से मन गद गद हो गया
तदोपरांत मैं कहना चाहूँगा के
"अगरबत्ती का उजाला" 
अर्थात वो उजाला जो केवल अगरबत्ती तक ही सीमित हो
अर्थात दूसरों के लिए वो उजाला व्यर्थ है या है ही नहीं
जो व्यक्ति चाटुकारिता का अंधापन जी रहा हो
उसे ऐसा ही उजाला चाहिए

आप दोनों श्रेष्ठ गुरुजनों और विज्ञों ने मुझे अपने ज्ञान से आलोकित किया इसके लिए मैं नित आपका आभारी हूँ
अपना स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये

आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 13, 2012 at 10:00am

आदरणीय अलबेला सर जी सादर प्रणाम
आपने मेरी रचना को समय दिया और सराहा भी
इसके लिए मैं आभारी हूँ
अनुज पर ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सर जी

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 13, 2012 at 9:58am

आदरणीय रक्ताले सर जी सादर नमन
आपकी सराहना मिली शाब्दिक सार्थकता और बल मिला लेखन को
अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 13, 2012 at 9:57am

आदरणीय लक्ष्मण सर जी सादर प्रणाम
आपको रचना के भाव पसंद आये और आपकी सराहना मिली
आपका हार्दिक धन्यवाद सहित सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 13, 2012 at 8:23am

रचना का कथ्य गहन है. तदनुरूप शिल्प भी होना था. एक समझ को साझा करती रचना के लिये बधाई, संदीप भाई.

आदरणीय अम्बरीषभाईजी के कहे को मेरा भी अनुमोदन है. चूँकि प्रस्तुत रचना अतुकांत शैली की एक वैचारिक रचना है अतः भाव-संप्रेषण तार्किकता की कसौटी पर भी खरा उतरे. 

प्रस्तुति हेतु पुनः हार्दिक बधाई.. .

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 10:48pm

//अपशब्द और अशोभनीय
भाषाशैली
साहित्य के आदित्य पे ग्रहण
घोर अन्धकार
हर ओर
किन्तु अंधापन भाता है
कुछ चापलूसों को
चाटुकारों को
उन्हें रौशनी की जरुरत है
वैसे ही
जैसे
घोर अन्धकार को चाहिए हो 
अगरबत्ती का उजाला

क्या बात है संदीप जी ..बहुत खूब ....मगर अगरबत्ती में उजाला ????

//हकीकत से परे
भक्ति में लीन
भक्त शैतान भगवान्
सब दिखते
आदमी छोड़ के
लिखते लिखते //

अति सुन्दर व सार्थक बेहतरीन अभिव्यक्ति ....बधाई मित्रवर |

Comment by Albela Khatri on September 12, 2012 at 10:18pm

वाह वाह
अपशब्द और अशोभनीय
भाषाशैली
साहित्य के आदित्य पे ग्रहण
घोर अन्धकार
हर ओर
किन्तु अंधापन भाता है
कुछ चापलूसों को
चाटुकारों को
उन्हें रौशनी की जरुरत है
__बहुत खूब !

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 12, 2012 at 7:42pm

जैसे
घोर अन्धकार को चाहिए हो 
अगरबत्ती का उजाला
खुशबूदार धुंध
हकीकत से परे
भक्ति में लीन
भक्त शैतान भगवान्
सब दिखते
आदमी छोड़ के
लिखते लिखते
वाह! आदरणीय संदीप जी बहुत सुन्दर रचना हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service