For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - बचा है अब यही इक रास्ता क्या

दोस्तों, ग़ज़ल पेश ए खिदमत है गौर फरमाएं ..

बचा है अब यही इक रास्ता क्या
मुझे भी भेज दोगे करबला क्या


तराजू ले के कल आया था बन्दर
तुम्हारा मस्अला हल हो गया क्या


अचानक क्यों हुए हैं पानी पानी
हवा ने बादलों से कुछ कहा क्या

 

ग़ज़ल में रंग भरना है जरूरी
मगर सादा न हो तो फ़ायदा क्या

 

यहाँ पत्थर भी शीशा हो गया है 
यहाँ से बन्द है हर रास्ता क्या


उदू से दफ्अतन मैं पूछ बैठा
हमारे दरमियाँ है मस्अला क्या


ग़ज़ल कह कर हुआ दीवाना मैं तो
ग़ज़ल सुन कर तुम्हें भी कुछ हुआ क्या


ए 'वीनस' काश मैं यह जान पाता
है रखना याद क्या, है भूलना क्या

Views: 823

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 10, 2012 at 10:55am

आदरणीय वीनस जी सादर प्रणाम 
ऐसी उम्दा ग़ज़ल को पढके दिल बार बार इक इक शेर गुनगुनाता है
और सोचता है काश ऐसे अशआर हमारे होते
सच कहूँ तो हर इक शेर पे दाद पे दाद दे कुर्बान होने का जी करता है
सीखने का हर मौका देती है ऐसी सादा कहन है आपकी
और फिर आपकी ग़ज़ल भी कहती है
ग़ज़ल में रंग भरना भी जरूरी
मगर सादा न हो तो फ़ायदा क्या

ग़ज़ल कह कर मैं दीवाना हुआ हूँ
ग़ज़ल पढ़ कर तुम्हें भी कुछ हुआ क्या

हमें जो हुआ है वो हर्फों में बयाँ कैसे करें साहब मुश्किल है कहना


उसे मुझसे नहीं है इश्क जब तो

कहो फिर रूठना भी खा-म-खा क्या ...........दीप..............


इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिल से दाद क़ुबूल कीजिये साहब

और आपके सहयोग को यूँ ही बनाये रखिये

आपका सादर धन्यवाद सहित आभार

Comment by Nilansh on September 9, 2012 at 8:30pm

बहुत सुंदर वीनस जी, बहुत बधाई

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 9, 2012 at 11:45am

वाह भाई वाह! क्या शानदार अश'आर से सजी ग़ज़ल पेश की आपने! कुछ नए तो कुछ पुराने विचार मगर सबकी पेशकश एक निराले अंदाज़ में! ख़ास दाद इन दो शे'रों के लिए क़ुबूल फ़रमाएं!

उदू से दफ़्अतन मैं पूछ बैठा,

हमारे दरमियाँ है मुद्दआ क्या? --> कभी-कभी पुरानी समस्या की जड़ अचानक ही मिल जाती है..

ग़ज़ल में रंग भरना भी ज़रुरी,

मगर सादा न हो तो फ़ायदा क्या? --> सादगी की ख़ूबसूरती का कोई जोड़ नहीं सच है.. :)

ख़ामोशग़ाज़ीपुरी का कलाम याद आ गया

आरिज़ो लब सादा रहने दो,

ताजमहल पे रंग न डालो..

साभार,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service