For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जो लोग इस जहाँ में वफ़ादार होते हैं

जो लोग इस जहाँ में वफ़ादार होते हैं
दुनिया में आज वो ही गुनाहगार होते हैं

ऐसा न हो कहीं के सजा इनको भी मिले
कुछ लोग क्यूँ हमारे तरफदार होते हैं

वो ज़ुल्म भी करें तो उन्हें सब मुआफ है
हम उफ़ भी करते हैं तो ख़तावार होते हैं

हरगिज़ न उतरें इश्क के दरिया में नौजवान
दरया-ऐ-इश्क में कई मझदार होते हैं

एहसास-ऐ-कमतरी में रहते हैं जो मुब्तिला
वो भी दिल-ओ-दिमाग से बीमार होते है

छब्बीस जनवरी हो या स्वतंत्रता दिवस
हम लोगों के यहाँ यही त्यौहार होते हैं

रिश्वत का बोलबाला न हो कैसे ऐ "हिलाल"
जब मरहले इसी से ही हमवार होते हैं

Views: 409

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hilal Badayuni on October 17, 2010 at 5:34pm
shukriya aadil bhai
Comment by mohd adil on October 16, 2010 at 5:27pm
bhut khoob jnb bhut khoob. ache ghazil ha
Comment by Hilal Badayuni on October 16, 2010 at 3:50pm
shukriya wafa saahab shukriya
Comment by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 15, 2010 at 7:13pm
भाई गाज़ल का मतला बहुत अच्छा है मुबारक हो.
Comment by Hilal Badayuni on October 13, 2010 at 10:07pm
बहुत बहुत शुक्रिया गणेश भाई
जो शेर आपने पसंद किये है वो मुझे भी पसंद है खैर आपकी मुहब्बतों का बहुत शुक्रगुज़ार हु जो आप हमेशा मेरी हौंसला अफजाई फरमाते है

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2010 at 10:06am
वो हो, वाह वाह वाह , बहुत खूब हिलाल भाई, समुन्द्र से मोती निकाल लाये आप, जबरदस्त शे'र ..........

ऐसा न हो कहीं के सजा इनको भी मिले
कुछ लोग क्यूँ हमारे तरफदार होते हैं

वो ज़ुल्म भी करें तो उन्हें सब मुआफ है
हम उफ़ भी करते हैं तो ख़तावार होते हैं,

बहुत बहुत बधाई इस खुबसूरत ग़ज़ल पर ,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service