For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

किसान,
प्रतीक अथक श्रम के
अतुल्य लगन के ;
प्रमुख स्तंभ
भारतीय अर्थव्यवस्था के,
मिट्टी से सोना उगानेवाले
आज उपेक्षित हैं
परित्यक्त हैं
अपने ही "कर्जदारों" द्वारा
चुनी सरकारों द्वारा ;
फंसे हैं मकड़जाल में
महाजनों, सूदखोरों,
बिचौलियों के,
जा चुके हैं हाशिये पर
एक कृषिप्रधान देश में
बदलते परिवेश में ;
क्षुधा-संग्राम हेतु
शस्त्र बनाने वाले,
स्वयं निःशस्त्र हैं
अवसाद से त्रस्त हैं ;
विवश हैं
आत्महत्या के लिए,
कृषि छोड़ने के लिए,
आवश्यकता है
स्थिति सुधारने की,
उन्हें उबारने की ;
अन्यथा
देर हो जाएगी
बहुत देर...|

 

(नोट - चूंकि किसान का कर्जदार पूरा देश होता है, इसी मायने में "कर्जदार" शब्द का प्रयोग किया गया है)

Views: 540

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 5, 2012 at 8:08pm

रचना को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय अरुण सर........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 5, 2012 at 6:40pm

क्षुधा-संग्राम हेतु
शस्त्र बनाने वाले,
स्वयं निःशस्त्र हैं ||

सराहनीय पंक्तियाँ. एक सार्थक रचना हेतु बधाई स्वीकार करें |

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 5, 2012 at 5:50pm

रचना पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र जी.....जय श्री राधे....

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 5, 2012 at 5:49pm

वैचारिक समर्थन के लिए आपका हार्दिक आभार रक्ताले सर.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 5, 2012 at 5:48pm

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण सर.......

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 5, 2012 at 1:01am

क्षुधा-संग्राम हेतु
शस्त्र बनाने वाले,
स्वयं निःशस्त्र हैं
अवसाद से त्रस्त हैं ;
विवश हैं
आत्महत्या के लिए,

प्रिय अजीतेंदु जी ...काश ये हमारे किसान का दर्द हमारी सरकार और विकास को गति देने वालों के आँखों में भी नजर आती 

सुन्दर रचना ..जय जवान जय किसान 
.जय श्री राधे .....भ्रमर ५ 

 

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 5, 2012 at 12:03am

गौरव जी        

          मिट्टी से सोना उगानेवाले
आज उपेक्षित हैं
परित्यक्त हैं
अपने ही "कर्जदारों" द्वारा
चुनी सरकारों द्वारा ;
फंसे हैं मकड़जाल में
महाजनों, सूदखोरों,
बिचौलियों के,
जा चुके हैं हाशिये पर

किसानो कि पीड़ा को शब्दों के सहारे सब के सामने लाने के लिए आभार.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 4, 2012 at 6:38pm

मिटटी से सोना उगाने वाले आज उपेक्षित है, अपने ही कर्जदारों द्वाराऔर चुनी हुई सरकारों द्वार आज उपेक्षित है,

अवसाद से त्रस्त है, विवश है |कुमार गौरव अजितेंदुजी, इसका हम सभी को अवसाद है | इस पर लोगो का ध्यान

आकृष्ट करने हेतु रची कविता हेतु बधाई |

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 4, 2012 at 5:51pm

आदरणीया रेखा जी, आपका हार्दिक आभार.......कृषि की उपेक्षा के दुष्परिणामों को सरकार जिस तरह से नजरअंदाज कर रही है वो किसानों के मन में एक आक्रोश को जन्म दे रहा है.......जिसके परिणाम घातक हो रहे हैं.....लेकिन सरकार है की समझने का नाम नहीं ले रही......

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 4, 2012 at 5:45pm

उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय सौरभ सर........

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service