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(सूर घनाक्षरी एक प्रयास)

कानों में रस घोलती, कोयल की मीठी तान,

अमवा पे है बोलती,  मान या ना मान.

                             .

दादीमाँ ने नुस्खे लिखे,ज्यों औषधियों की खान,

घर  में ही  सब मिले,मान या ना मान.

                             .

संकट में जो साथ दे, तू भाई उसे ही जान,

यूँ तो भाई अनेक हैं, मान या ना मान.

                             .

 जीवन पल चार हैं, रखना मन में ध्यान,

पल ही बीत जाएगा, मान या ना मान.

                             .

है ईश्वर सब कहें, पर ना माने विज्ञान,

 प्रभु नाम से ही तरें, मान या ना मान.

                            .

विदा अतिथि ना करें, दिए बिना जलपान,

प्रभु अतिथि एक है, मान या ना मान.

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 27, 2012 at 9:50am

मानना तो पड़ेगा साहब ..................बहुत बेहतरीन छंद के लिए हार्दिक बधाई आपको

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 27, 2012 at 9:00am

//पल जीवन चार हैं, रखना मन में ध्यान,

पल में बीत जाएगा, मान या ना मान.//

सुप्रभात अशोक  कुमार जी, इस रचना के माध्यम से आपने अति सुंदर सन्देश दिए है जिन्हें जीवन में उतार कर उसे सुखमय बना सकते हैं .....बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें मित्र ...

सूर-घनाक्षरी का नाम आज पहली बार देख रहा हूँ ....कृपया इसके शिल्प पर प्रकाश डालें ...रचना के प्रवाह पर भी आपकी एक दृष्टि वांछित है ....सादर  

Comment by deepti sharma on July 26, 2012 at 11:25pm

पल जीवन चार हैं, रखना मन में ध्यान,

पल में बीत जाएगा, मान या ना मान.

वाह मान गये बहुत ही सुंदर

Comment by Albela Khatri on July 26, 2012 at 9:27pm

वाह वाह रक्ताले साहेब
बहुत सरस छंद.......
जय हो

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