For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सौ साल बाद एक पैसे का सिक्का गढ्ढे से बाहर निकला। एक ऊँची इमारत बनाने के लिए खुदाई चल रही थी। एक मजदूर के फावड़े से टकराकर मिट्टी के साथ उछला और जाकर सड़क के किनारे गिरा। वर्षों बाद उसने खुली हवा में साँस ली और अपने आस पास नजर घुमाई तो उसे कई निर्माणाधीन इमारतें दिखाई पड़ीं। थोड़ी देर खुली हवा में साँस लेने के बाद धीरे धीरे उसकी चेतना लौटने लगी। उसे याद आने लगा कि कैसे वो एक सेठ की थैली से निकलकर गढ्ढे में गिर गया था। सेठ ने उसे निकालने की कोशिश की मगर अंत में थक हारकर सेठ ने उसे गढ्ढे में ही छोड़ दिया था। पर तब तो यहाँ जंगल हुआ करते थे, उसने सोचा। खैर मुझे इससे क्या मैं तो आखिरकार आज इस मिट्टी की कैद से आजाद हो ही गया हूँ। पहले थोड़ी देर इस स्वतंत्रता का आनंद उठा लूँ फिर कुछ सोचूँगा।

तभी सड़क किनारे खेलते हुए एक मजदूर के बच्चे की निगाह उस सिक्के पर पड़ी। उसने दौड़कर सिक्का उठा लिया। बस फिर क्या था वो सिक्का बच्चे का खिलौना बन गया। बच्चा दिनभर उस सिक्के से खेलता रहा और शाम को ले जाकर अपने गुल्लक में डाल आया। जैसे ही सिक्का गुल्लक में रखे एक रूपए के सिक्कों के ऊपर गिरा उनमें खलबली मच गई। एक रूपए के सिक्के एक साथ बोल उठे, “अरे ये घिसा पिटा, पुराना, मूल्यहीन बेकार सिक्का यहाँ कहाँ से आ गया। ये खुद तो गंदा है ही हमें भी गंदा बना देगा। एक तो हम पहले ही इतनी कम जगह में एडजेस्ट कर रहे हैं ऊपर से ये चिरकुट और टपक पड़ा।” एक पैसे का सिक्का इतने सारे रूपयों को एक साथ देखकर आश्चर्यचकित रह गया। आज से पहले उसने एक रूपए के सिक्के ज्यादातर सपनों में ही देखे थे। कभी कभार ही उसकी मुलाकात एक रूपए के किसी सिक्के से हो पाती थी वो भी इतने कम समय के लिए कि उनके बीच कोई बात हो पानी पूर्णतया असंभव थी। एक दूसरे से टकराकर खनकना तो बहुत दूर की बात थी। वैसे भी उस जमाने में एक रूपए के सिक्के कम हुआ करते थे तिसपर उनकी कीमत भी बहुत ज्यादा थी। अपनी कीमत के घमंड में चूर ढेरों चवन्नियों और अठन्नियों के साथ मौज मस्ती करते हुए उन्हें इस बात की खबर भी नहीं हो पाती थी कि कोई एक पैसे का सिक्का हसरत भरी निगाहों से उनकी तरफ देख रहा है। उनसे दो बातें करना चाहता है और हो सके तो अपनी कीमत बढ़ाने का तरीका भी सीखना चाहता है। एक पैसे के मन में एक रूपए के लिए उस समय अपार श्रद्धा थी। एक पैसा तो इस बात के लिए भी तैयार था कि अगर एक रूपया गुरु बनने को तैयार हो गया तो गुरुदक्षिणा में वो अपना अगूँठा भी काटकर उसे दे देगा।

अब इतने सारे एक रूपए कि सिक्कों को एक साथ इतनी कम जगह में रहते देखकर उस पुरानी छवि को एक जोरदार झटका लगा। रही सही कसर इस बात ने पूरी कर दी कि उनके पास अब न कोई चवन्नी थी न कोई अठन्नी। फिर भी पुरानी आदतों के कारण उसने हाथ पैर जोड़े कि इसमें मेरा कोई कुसूर नहीं था ये तो उस बच्चे ने गलती से उसे उनके साथ रख दिया। पर एक रूपए के सिक्कों ने उस पर कोई दया नहीं की वो रात भर उसे कोसते रहे और उसे उसकी मूल्यहीनता का अहसास कराते रहे।

दूसरे दिन सारे सिक्कों ने जोर जोर से खनकना शुरू किया। बच्चे की माँ ने समझा कि गुल्लक भर गया है और उसे तोड़कर अब वो अपने लिए एक नई साड़ी खरीद सकती है। थोड़ी ही देर बाद गुल्लक एक तरफ फूटा पड़ा था और बच्चे की माँ सिक्के गिन रही थी। उसे एक पैसे का सिक्का दिखा तो उसने घृणा से नाक मुँह सिकोड़ लिया और बच्चे को बुलाकर सिक्का उसे थमा दिया।

बच्चा सिक्के के साथ खेल रहा था। निर्माणाधीन इमारत का मालिक अपने बेटे के साथ वहाँ निर्माणकार्य का निरीक्षण करने आया हुआ था। मालिक के बेटे को पुराने सिक्के इकट्ठा करने का शौक था। उसने बच्चे के हाथ में सिक्का देखा तो देखने के लिए माँगा। बच्चे ने सिक्का दे दिया। देखने के बाद मालिक के बेटे ने कहा कि ये सिक्का मुझे बेचोगे। गरीब बच्चे को क्या पता बेचना खरीदना क्या होता है। उसने समझा कि ये मुझसे मेरा सिक्का माँग रहा है। बच्चे ने इंकार कर दिया और अपना सिक्का वापस माँगने लगा। मालिक के बेटे ने कहा नहीं ये सिक्का तुम्हारे किसी काम का नहीं है तुम इसे मुझको बेच दो। पता नहीं बच्चे ने क्या समझा मगर अगले ही पल बच्चे ने वही किया जिसे करना बच्चे अच्छी तरह जानते हैं। उसने दहाड़ मारकर रोना शुरू कर दिया। बच्चे का रोना सुनकर उसका बाप दौड़ा दौड़ा वहाँ आया। अन्य मजदूर भी उसी तरफ देखने लगे। मजदूर ने सारी बात सुनी तो उसने अपने बच्चे को समझाया बेटा ये तुम्हें एक सिक्के के बदले में ढेर सारे सिक्के दे देंगे फिर मैं तुम्हें उन सिक्कों से खिलौने खरीद दूँगा। बात बच्चे की समझ में आ गई। मालिक ने भी मौके की नजाकत को समझते हुए उस सिक्के के बदले दो सौ रूपए दिए। मालिक को पता नहीं था कि ये सिक्का उसी की जमीन से निकला है।

अब एक पैसे के सिक्के के पास दीवाल पर अपना एक खूबसूरत घर था। सप्ताह में एक बार उसे निकालकर उसकी सफाई की जाती थी। उसके आस पास की दीवाल पर बने कमरों में उसी की तरह कई पुराने सिक्के रह रहे थे। चवन्नियाँ अठन्नियाँ अपने अलग कमरे की आशा में फिलहाल एक ही कमरे में रह रही थीं। बड़े बड़े लोग वहाँ आते और इतने पुराने सिक्कों को एक साथ देखकर दंग रह जाते थे। इन सिक्कों को देखकर कितने संभ्रांत वृद्ध अपने बचपन और जवानी के दिन याद करने लगते थे। यह सब देख सुनकर एक पैसे के सिक्के का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था।

एक दिन एक पैसे के सिक्के ने देखा कि कमरे के कोने में रखी मेज की दराज में कुछ एक रूपए के सिक्के पड़े हुए हैं। उन पर धूल जम गई थी। इतने बड़े घर में रेजगारी को कौन पूछता है। उन सिक्कों को देखते ही उसे अपने अपमान की याद हो आई जो उस रात एक रूपए के सिक्कों ने मिलकर किया था। क्रोध से उसके नथुने फूलने पिचकने लगे। उसने उन सिक्कों से कहा, “तुम्हारे जैसे सैकड़ों सिक्के मिलकर भी आज मेरी कीमत की बराबरी नहीं कर सकते। तुम लोग इसी काबिल हो कि इसी दराज में पड़े पड़े सड़ जाओ”। ऐसा कहकर उसने बाकी पुराने सिक्कों की तरफ देखा। पुराने सिक्के प्रशंसा भरी निगाहों से उसे देखने लगे। सिर्फ़ चोर ही मौसेरे भाई नहीं होते। कुछ चवन्नियों ने तो उसकी तरफ चुम्बन भी उछाले। पुराने सिक्कों को अपना अनुभवी नेता मिल गया था। अब बस अगले चुनावों की घोषणा होने का इंतजार था।

Views: 733

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 14, 2012 at 12:23pm
आदरणीय सौरभ जी, बहुत बहुत शुक्रिया आपके स्नेह के लिए।
Comment by Dipak Mashal on December 14, 2012 at 12:41am

बागी जी यह लिंक देने के लिए आभारी हूँ।

Comment by Dipak Mashal on December 14, 2012 at 12:40am

कमाल का लिखा है धर्मेन्द्र भाई। सुनहरी कल्पनाशीलता के लिए बधाई स्वीकारें।

Comment by AVINASH S BAGDE on July 21, 2012 at 6:43pm

बहुत  सुन्दर धर्मेन्द्र भाई

हार्दिक बधाइयाँ.  

साधारण तरीके से असाधारण बात (Bagi ji ka sateek vivechan)

कुछ चवन्नियों ने तो उसकी तरफ चुम्बन भी उछाले   ताज़ा स्टारडम को आपने बखूबी परखा और कैश किया है.(Saurabh ji ka bhi mantavy to d point hai)


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 20, 2012 at 8:32am

भोजपुरी में एक कहावत है .."घुरवो के दिन फिरेला" इस कहानी के माध्यम से लेखक ने बहुत ही साधारण तरीके से असाधारण बात कह दी है, कथानक, शैली वाह वाह , बहुत ही सुन्दर धर्मेन्द्र भाई, बधाई स्वीकार करें |

आदरणीया राजेश कुमारी जी की टिप्पणी से मैं बिलकुल सहमत हूँ |

Comment by आशीष यादव on July 20, 2012 at 12:16am

बड़ी अच्छी कहानी। सिक्के के माध्यम से बहुत बड़ी बात कहने मे सफल रहे हैं। बेजोड़ रूपक है।
बहुत-बहुत बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 19, 2012 at 9:04pm

धर्मेन्द्र जी आपका तो स्टाइल ही निराला है आपकी कोई भी रचना में एक नया प्रयोग नए बिम्ब  होते हैं अब देखिये सिक्कों के माध्यम से ही स्वाभिमान जैसी बात को कितनी आसानी से कह दिया नया एक दिन पुराने सौ दिन इंग्लिश में ओल्ड इस गोल्ड कहावतों को शब्दों कि जादूगरी से चरितार्थ किया है कहानी में रोचकता का प्रवाह कहीं भी शिथिल नहीं पड़ता अंत में बहुत अच्छा सन्देश मस्तिष्क को पहुचाती है हार्दिक बधाई इस अनुपम कहानी के लिए |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 19, 2012 at 8:49pm

आत्म परिचय को विशिष्ट शैली में खंगालती इस कहानी के लिये धर्मेन्द्र भाई आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.

कुछ चवन्नियों ने तो उसकी तरफ चुम्बन भी उछाले   ताज़ा स्टारडम को आपने बखूबी परखा और कैश किया है.

हार्दिक बधाइयाँ.   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
19 hours ago
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म…See More
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
yesterday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
Thursday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
Thursday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है हर हाल में  दीप के भाव जलना है हर हाल में   हर अँधेरा निपट…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Oct 26
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत धन्यवाद"
Oct 26
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Oct 26

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service