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जाने क्यों ?

दीवान में 

बटोर कर रखा 

बरसों पुराना सामान 

कुछ चीज़ें मात्र नहीं होता....

उसमे तो कैद होते हैं 

ज़िंदगी के वो खूबसूरत पन्ने 

जो हमें उस रूप में ढालते हैं

जो आज हम हैं....

हमारी पूरी ज़िंदगी

समेटे होती हैं

वो कुछ

गिनी चुनी निशानियाँ....

कुछ गुड्डे- गुडिया

जिनकी आँखों में

आज भी मुस्कुराता है हमारा बचपन....

कुछ फूलों की 

सूखी पंखुड़ियां 

जो आज भी दोस्ती बन महकती  हैं जहन में....

कुछ सदभावना सन्देश

जो दुआएं हैं अपनों की

ईश्वर के साए की तरह....

कुछ पीले पड़ चुके पन्ने

जो समेटे हैं

मोहब्बत की खूबसूरती....

कुछ तोहफे

जो बेशकीमती धरोहर हैं....

और भी बहुत कुछ,                                                                           

शायद सभी कुछ है

दीवान के अन्दर....

कहाँ बदला है वक़्त ?

वक़्त तो ठहरा हुआ है

आज भी हर एहसास को

उतनी ही ताजगी से सम्हाले.....

कहाँ बदलता  है स्थान ?

बदलते तो हम हैं

अपने ही रास्ते

फूलों की डगर से काँटों की ओर.....

सचमुच

बदलते तो हम हैं

अपने ही 'स्व' के 'अभिमान' से....

पर

समेट लेते हैं

ज़िंदगी की ख़ूबसूरती को

कुछ तहें बना कर

दीवान के अन्दर

और

बड़ते जाते हैं अकेले....

...... जाने क्यों ?

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Comment by Rekha Joshi on July 17, 2012 at 3:45pm

आदरणीय प्राची जी

पर

समेट लेते हैं

ज़िंदगी की ख़ूबसूरती को

कुछ तहें बना कर

दीवान के अन्दर

और

बड़ते जाते हैं अकेले..अति सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 16, 2012 at 9:36am

सचमुच सही कहाँ है आपने आदर. डॉ. प्राची जी-

बदलते तो हम हैं,अपने ही 'स्व' के 'अभिमान' से....

पर,समेट लेते हैंज़िंदगी की ख़ूबसूरती को | बहुत अच्छी रचना बधाई 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 15, 2012 at 9:34pm

वो कुछ

गिनी चुनी निशानियाँ....

कुछ गुड्डे- गुडिया

जिनकी आँखों में

आज भी मुस्कुराता है हमारा बचपन....

कुछ फूलों की 

सूखी पंखुड़ियां 

जो आज भी दोस्ती बन महकती  हैं जहन में.

डॉ प्राची जी ..बहुत खूब कहा आपने सटीक और सत्य बहुत काम आता है ये हमारे जीवन में 

जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 
Comment by अरुन 'अनन्त' on July 15, 2012 at 6:03pm

वाह बहुत ही खूबसूरती से बयाँ किया है आपने...

कृपया ध्यान दे...

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