कहीं लब पर तराने हैं मुहब्बत के फ़साने हैं.
सुहाने दिन तेरी आगोश में मुझको बिताने हैं.
फिजा में ये हवायें भी तेरे दम से महकती हैं,
सुना है हीर की खातिर कई रांझे दिवाने हैं...
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यहाँ सब लोग तेरे हुश्न के किस्से सुनाते हैं.
अधर ये शबनमी उसके मुझे अक्सर रिझाते हैं.
बहुत बेचैन है ये दिल उड़ी है नींद आँखों से,
कटीले दो नयन तेरे बहुत मुझको सताते हैं..
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समयाभाव के चलते जल्दबाजी में दो मुक्तक लिख दिए हैं गुरुजनों एवं अग्रजों से निवेदन है की उचित मार्गदर्शन एवं अपना आशीर्वाद प्रदान करें.
Comment
आदरणीया डॉ. प्राची मैम आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया और उत्साहवर्धन के लिए ह्रदय से कोटि कोटि नमन एवं आभार
आदरणीया Rekha Joshi मैम सादर नमन उत्साहवर्धन एवं आशीर्वाद प्रदान करने के लिए बहुत बहुत आभार
आदरणीय अरुण "अनंत" जी उत्साहवर्धन एवं प्रतिक्रिया लिए बहुत बहुत आभार
आदरणीय संदीप सर उत्साहवर्धन एवं आशीर्वाद प्रदान करने के लिए बहुत बहुत आभार
आदरणीय वाहिद सर उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार सादर नमन
आदरणीया राजेशकुमारी मैम सादर नमन उत्साहवर्धन एवं आशीर्वाद प्रदान करने के लिए बहुत बहुत आभार
आदरणीय अलबेला सर सादर नमन उत्साहवर्धन एवं आशीर्वाद प्रदान करने के लिए बहुत बहुत आभार
बहुत सुन्दर मधुर सुप्रवाह लिए मुक्तकों के लिए बहुत बहुत बधाई प्रिय शैलेन्द्र मृदु जी
अति सुंदर मुक्तक शैलेन्द्र जी ,बधाई
वाह क्या बात है , अति सुन्दर बधाई
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