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मिरे खाबों के शबिस्ताँ

ये मेरी लिखी पहली ग़ज़ल है जो मैंने पूरे प्रयास से बह्र में लिखने की कोशिश की है.
  आप सभी जानकार लोगों से गुज़ारिश है कि तब्सिरा करके खामियां बताएं. आप सब का आभार. :)
  इसका वज़न कुछ ऐसा गिना है मैंने.
  1222/2122/1222/122

   

    मिरे खाबों के शबिस्ताँ में तेरा ही असर है
    गुलों की ख़ुश्बू तिरी नूर से रोशन नज़र है !

    कहाँ होती बात वो यूँ समंदर की अदा में
    सदफ से पूंछो मशक्क़त, कोई पाया गुहर है

    तमाशा है, क्या कहूं,ज़ुल्म है तेरा मगर यूँ
    दहर में चर्चा है. तुहमत है, तू ही बे-खबर है !

    शोरीदा हूँ, खाक-बर-सर मुझे हासिल हुई है
    सितम है औ पा-ब-जौलां मगर, इश्क-ए-शरर है !
 
    मुझे बख्त-ए-शब-ए-फर्दा पता ही तो नहीं है
    कहाँ होता फैसला कब दिखता यूँ सहर है.

===================================
 
शबिस्ताँ=शयनकक्ष; ,सदफ़=सीप ;, मशक्क़त=मेहनत ;, गुहर= मोती,; दहर=दुनिया ;, तुहमत=लान्छन,; शोरीदा=दीवाना ;, खाक-बर-सर= सर पर मिट्टी,; पा-ब -जौलां=पाँव में बेडियाँ,; इश्क-ए-शरर= चिंगारी से मोहब्बत ;, बख्त-ए-शब-ए-फर्दा= कल की रात का भाग्य,; सहर= भोर ..;
 

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Comment

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Comment by Yogi Saraswat on July 3, 2012 at 4:01pm

ग़ज़ल के भाव अच्छे लगते हैं किन्तु उर्दू के कठिन शब्द और उनके मायने न आने की वज़ह से समझ पाने में मुश्किल पेश आती है !

Comment by Raj Tomar on July 3, 2012 at 9:35am

शबिस्ताँ=शयनकक्ष; ,सदफ़=सीप ;, मशक्क़त=मेहनत ;, गुहर= मोती,; दहर=दुनिया ;, तुहमत=लान्छन,; शोरीदा=दीवाना ;, खाक-बर-सर= सर पर मिट्टी,; पा-ब -जौलां=पाँव में बेडियाँ,; इश्क-ए-शरर= चिंगारी से मोहब्बत ;, बख्त-ए-शब-ए-फर्दा= कल की रात का भाग्य,; सहर= भोर ..; 

श्रीमान अरुण कुमार जी. हाँ, ये गलती हो गई थी मुझसे. मैंने कोशिश की सुधारने की.
आपका शुक्रिया कि आप ने ग़ज़ल को एक बार देखा तो.


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Comment by अरुण कुमार निगम on July 2, 2012 at 12:03am

मेहरबानी कर हिंदी शब्दार्थ भी लिख दें तो समझने में आसानी होगी.

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"आदरणीय अखिलेश भाई साहब, आपकी प्रस्तुतियाँ तनिक और गेयता की मांग कर रही हैं. विश्वास है, आप मेरे…"
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