सानिध्य में सुदूर हर बात से मजबूर
सजग चिंतित, विराग अनुराग !
प्रतिकूल मंचन, मुलाक़ात सज्जन
फिर वहीँ आचार विचार संचन !
दिशाहीन नाव, अथाह सागर
मस्ती तूफ़ान ज्यों यादगार मगर !
अद्वैत, असहाय , निरुपाय
कुमकुम की कली तेज धुप अलसाय !
मधुर मिलन फिर वही चिंतन
अनुराग अपार तेजधार बहाव !
धूमिल क्षितिज , कलरव
अभिनव राग हज़ार बार !
हरित निष्प्राण मंद वायु यार
व्यक्त-अव्यक्त निशावार हार !
उधेड़बुन मनलय कोपल किसलय
द्वैत-अद्वैत तलाश अविनाश !
मनरत, कर्मरत अवकाश निवास
विहार-विचरण हार- बगार !
फिर वही द्वंद्व नभ तारे धरा
जल, थल, नभ हर जीव हरा !
कहाँ शक्ति संचित ज्वाला
अजन्मी, अव्यक्त विदेह बाला !!
Comment
आदरणीय योगराज सर, बहुत बहुत धन्यवाद आपका. :)
अति सुन्दर शब्द संयोजन, उत्तम अभिव्यक्ति. साधुवाद स्वीकार करें भाई राज तोमर जी.
श्रीमान सौरभ पाण्डेय जी , आभारी हूँ मैं आपकी शुभेच्छाओं और आशीर्वाद का. :)
रचनाधर्मिता को धारते शब्द दिशायुक्त हो समरस बनें. सरस प्रयास है.
शुभेच्छाएँ.
कुशवाहा साब एवं योगी जी, प्रसंशा करने के लिए आपका आभारी हूँ. :)
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रहता रचना का इन्तजार
बधाई आपको है हजार
फिर वही द्वंद्व नभ तारे धरा
जल, थल, नभ हर जीव हरा !
कहाँ शक्ति संचित ज्वाला
अजन्मी, अव्यक्त विदेह बाला !!
बहुत खूब , राज तोमर जी ! सुन्दर अभिव्यक्ति
मैं आप का हृदय की गहराइयों से आभारी हूँ. रेखा जोशी जी ,अविनाश जी, राजेश कुमारी जी एवं अलबेला साब. ऐसे ही हौसला अफजाई करते रहिये . :)
राज तोमर जी ,
अद्वैत, असहाय , निरुपाय
कुमकुम की कली तेज धुप अलसाय !
कहाँ शक्ति संचित ज्वाला
अजन्मी, अव्यक्त विदेह बाला !!
bahut umda Raj bhai.द्वैत-अद्वैत तलाश अविनाश !
मनरत, कर्मरत अवकाश निवास ...wah.
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