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नीम में लगती दीमक
रिश्तों में मिठास नहीं
डूब गयी आशा किरण
एक दूजे पे विश्वास नहीं
रिश्तों का प्रबल क्षरण
जुड़ने के आसार नहीं
घर घर छिड़ा अब रण
मीठा स्वप्न संसार नहीं
चन्दन लिपटत न भुजंग
शीतलता का वास नहीं
माता करती भ्रूण भंग
नारी के संस्कार नहीं
भूल गए करना सत्संग
जीवन से अब प्यार नहीं

Views: 573

Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 21, 2012 at 5:03pm

धन्यवाद, योगी जी, सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 21, 2012 at 5:03pm

आदरणीय सौरभ गुरुदेव सर जी, सादर अभिवादन.

कोशिश में ही झूम गए. बहुत बड़ा आशीर्वाद है मेरे लिए. 

आभार. 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 21, 2012 at 5:01pm

धन्यवाद, आदरणीय बागडे जी, सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 21, 2012 at 5:00pm

धन्यवाद आदरणीय पटेल जी, सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 21, 2012 at 4:59pm

धन्यवाद आदरणीय अलबेला जी, सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 21, 2012 at 4:59pm

धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी, सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on September 21, 2012 at 4:58pm

धन्यवाद स्नेही गौरव जी, सादर 

Comment by Yogi Saraswat on June 22, 2012 at 3:57pm

शीतलता का वास नहीं
माता करती भ्रूण भंग
नारी के संस्कार नहीं
भूल गए करना सत्संग
जीवन से अब प्यार नहीं

बहुत  सुन्दर  रचना  आदरणीय  प्रदीप  कुशवाहा  जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 21, 2012 at 11:47pm

आपकी भली कोशिश पर हम झूम गये .. .

बधाई.. .

Comment by AVINASH S BAGDE on June 21, 2012 at 3:40pm

नीम में लगती दीमक 
रिश्तों में मिठास नहीं
डूब गयी आशा किरण 
एक दूजे पे विश्वास नहीं wah.....

aadarniy DEEMAK ji ko samarpit doosari(post pahali) rachana(Deep ki)

 

nice Pradeep ji.

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