"आज तो आपने इनकी मांग पूरी कर दी, लेकिन कल इन्होने कोई और महंगी चीज़ मांग ली तब आप क्या करोगे ?"
"चिंता काहे करती हो भगवान्, अभी तो एक और किडनी मौजूद है मेरे शरीर में."
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बहुत ही मर्मस्पर्शी
शुक्रिया राज़ साहिब.
मर्मस्पर्शी!
prbhakar ji, kidni to shrir me do hi hai par dahej ke rakhsh ke sir anek, aakhir majbur pita beti ke sukh ke liye kya kya bachega | sach me bete aur beti ke bich fark krane ke liye ye dahej namk asur hi to hai | dil ko chu lene vali kahani ke liye aapko badhai |
भाई उमाशंकर मिश्र जी, लघुकथा पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
भाई राज तोमर जी, उत्साहवर्धन हेतु ह्रदय से आभार.
अत्यंत मर्मस्पर्शी लघु कथा है भाई संजय मिश्र हबीब के कथन से सहमत हूँ पर इश्वर से प्रार्थना है की ऐसा घटित ना हो
सर जी , यह कथा बहुत ही मर्मस्पर्शी है.किस पहलू को देखा जाये समझ नहीं आता. एक बाप अपनी बिटिया की खुशी के लिए किडनी बेंच दिया...जिंदगी अपनी दाव पर लगा दिया..घर की हालत देखते हुए भी बिटिया कार ले ली..:(
अजीब बात है न.? बाप इसके बाद आगे भी तैयार है..क्या दृश्य है ..
तह-ए-दिल से शुक्रिया अनुज संजय मिश्र जी, आपको लघुकथा पसंद आई मेरा श्रम सार्थक हुआ.
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