For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घर के बाहर खाट लगादी बाबाजी

बोतल पर क्यों  डाट लगादी बाबाजी
मखमल में क्यों टाट लगादी बाबाजी



हमने जिसको जो भी ज़िम्मेदारी दी
उसने उसकी वाट  लगादी बाबाजी



कुल्फी खानी थी तो पहले  कह देते
अब तो मैंने चाट लगादी बाबाजी



पत्नी ख़ुश है क्योंकि  बूढ़े पापा की
घर के बाहर खाट  लगादी बाबाजी



हाय डार्लिंग ! की जगह बहनजी कहने पर
लड़की ने  चम्माट लगादी बाबाजी



पैसा लेकर प्रश्न  पूछने वालों ने
संसद में भी हाट लगादी बाबाजी



कौन बचाये जोशी को अब 'अलबेला'
जब मोदी ने काट लगादी बाबाजी



Views: 806

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 9:25pm

क्षमा चाहता हूँ  आदरणीय योगराज जी,  यद्यपि  आपने समझाया बहुत  सलीके  से है, परन्तु  मैं पूरी तरह अभी  भी समझ नहीं सका हूँ.  कदाचित  धीरे धीरे ही समझ आएगा . बहरहाल  मुझे  ये जानना था कि  अब इन्हें ठीक  कैसे करूँ ?

प्रयास करूँगा कि आगे इसे न दोहराऊं........आपने समय दिया, सुझाव दिया ...आपका आभारी हूँ
__धन्यवाद


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 15, 2012 at 2:51pm

अलबेला भाई जी, आपके बाकी अशआर बिलकुल ठीक ठाक हैं. देखिए. इस ग़ज़ल में "टाट, वाट, खाट और वाट आदि काफिये हैं, और "लगा दी बाबाजी" रदीफ़ है जोकि एकदम दुरुस्त है. दरअसल मतले या हुस्न-ए-मतला (पहले मतले के बाद में आने वाले मतले) के बाद जहाँ भी किसी शेअर के दूसरे मिसरे (मिसरा-ए-सानी) के अंत में "बाबाजी" के मुकाबले ऐसा शब्द लिया जायेगा जिसका अंत बड़ी "ई" की मात्रा से होता हो (मिसाल के तौर पर चालाकी, जासूसी, पिता जी, माता जी, हैरानी, परेशानी, नादानी, सालिम काली, पाली, निराली, ख्याली आदि) तो वह ऐब-ए-ताक़बुल-ए-रदीफ़ का दोष पैदा होगा.

Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 2:14pm

बहुत बहुत धन्यवाद  आदरणीय डॉ प्राची सिंह जी.........
आपकी सराहना  मेरे लिए प्रमाण-पत्र  से कम नहीं
____बाबाजी भी आपको शुक्रिया कह रहे हैं
____सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 15, 2012 at 2:07pm
बाबा जी के इतने सारे रूप देख कर मैं दंग हूँ.
तारीफ़ के लिए शब्द नहीं हैं... अशआर एक से बढ कर एक हैं.
हार्दिक बधाई आ. अलबेला जी..
Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 1:58pm

याद रखना भैया कुमार गौरव अजीतेंदु ............ख़ासकर यू पी  में तो बिलकुल बहनजी  मत कहना,  बहनजी कैसी होती हैं....ये वहाँ के लोग  जानते हैं ....हा हा हा हा

___आपकी टिप्पणी से आनन्द मिला ...आभार

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 15, 2012 at 1:51pm
बड़े भैया, आजकल बहन जी कहना यानि चम्माट खाना! बाप रे, अच्छा किया आपने पहले ही आगाह कर दिया। ही...ही...ही...
Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 1:46pm

आदरणीय  योगराज जी,
ख़ुशामदीद.
आप एक ख़ुशनुमा  बयार की तरह आये  और  सराहना के साथ साथ  मेरा तीय-पांचा करके  फट से चले भी गये .बड़ा  अच्छा  लगा आपका इस प्रकार विस्तार से  टिप्पणी करना .....धन्यवाद हुज़ूर...थैंक यू वैरी मच !

पर एक बात समझना चाहता हूँ ....आपने फरमाया कि

___दोनों मिसरों का अंत "दी" और "जी" से हुआ है जोकि समान स्वर पैदा कर रहे हैं. इल्म-ए-अरूज़ में इसे "ऐब-ए-ताकाबुल-ए-रदीफ़" के नाम से जाना जाता है.

___________प्रभुजी,  मेरे तो सारे  मिसरों में यही हुआ है . तो क्या ये पूरी रचना ऐबग्रस्त है ?  मैं  अगर ये कहूँ कि  इस ग़ज़ल का रदीफ़  "लगादी बाबाजी" है, तब भी क्या ये  ऐब ही है ?  मानलो  अगर ये ऐब है तो फिर इसका इलाज क्या है ?  क्या लगादी  को लगाई  करने से ठीक होगा  ?

कृपया  मार्गदर्शन करें............

_________धन्यवाद


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 15, 2012 at 1:22pm

//बोतल पर क्यों  डाट लगादी बाबाजी
मखमल में क्यों टाट लगादी बाबाजी// बोतल पर डाट - बहुत बेइंसाफी है ये. मतला सुन्दर कहा है.



//हमने जिसको जो भी ज़िम्मेदारी दी
उसने उसकी वाट  लगादी बाबाजी// हुज़ूर, गलत लोगों  को जिम्मेवारी सौंपेंगे तो यही होगा न ? एक पुराना गीत याद आ गया, "तुम अपना रंज-ओ-गम अपनी परेशानी मुझे दे दो"  वैसे किसी से कहियेगा मत मालिक, दोनों मिसरों का अंत "दी" और "जी" से हुआ है जोकि समान स्वर पैदा कर रहे हैं. इल्म-ए-अरूज़ में इसे "ऐब-ए-ताकाबुल-ए-रदीफ़" के नाम से जाना जाता है. 



//कुल्फी खानी थी तो पहले  कह देते
अब तो मैंने चाट लगादी बाबाजी// वाह वाह वाह !!!


//पत्नी ख़ुश है क्योंकि  बूढ़े पापा की
घर के बाहर खाट लगादी बाबाजी// क्या कहने हैं - क्या कहने हैं. जवाब नहीं इस शेअर का. हासिल-ए-ग़ज़ल शेअर.  हालाकि ऊपर बताया गया ऐब यहाँ भी चिपका हुआ है.



//हाय डार्लिंग ! की जगह बहनजी कहने पर
लड़की ने  चम्माट लगादी बाबाजी// अब आगे को कान हो जाने चाहियें भाई जी. :)))



//पैसा लेकर प्रश्न  पूछने वालों ने
संसद में भी हाट लगादी बाबाजी// सही फ़रमाया, मगर नतीजा क्या निकला ??



//कौन बचाये जोशी को अब 'अलबेला'
जब मोदी ने काट लगादी बाबाजी // जवाब नहीं सर जी. सब एक दूसरे की बो-काटा करने पर तुले हुए हैं. बहरहाल इस खूबसोरत और मसालेदार कलाम के लिए दिल से बधाई.  

Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 10:11am

आपका ख़ूब ख़ूब  धन्यवाद  सम्मान्य प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी.,

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 10:02am

पत्नी ख़ुश है क्योंकि  बूढ़े पापा की 
घर के बाहर खाट  लगादी बाबाजी

आदरणीय अलबेला जी, सादर अभिवादन 

एक से बढ़ के एक , बधाई. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय नीलेश भाई , खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई आपको "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय बाग़पतवी भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही , हर एक शेर के लिए बधाई स्वीकार करें "
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । आपके द्वारा  इंगित…"
6 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"सादर प्रणाम आप सभी सम्मानित श्रेष्ठ मनीषियों को 🙏 धन्यवाद sir जी मै कोशिश करुँगा आगे से ध्यान रखूँ…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय निलेश भाई, ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके फोन का इंतज़ार है।"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर 'बागपतवी' साहिब बहुत शुक्रिया। उस शे'र में 'उतरना'…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर,ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी एवं सुझावों के लिए हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल को समय देने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार"
10 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा

आँखों की बीनाई जैसा वो चेहरा पुरवाई जैसा. . तेरा होना क्यूँ लगता है गर्मी में अमराई जैसा. . तेरे…See More
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service