For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नियति तू कब तक खेल रचाएगी ..

नियति तू कब तक खेल रचाएगी

क्या हम सचमुच हैं

तेरे ही कठपुतले

तू जैसा चाहेगी

वैसा ही पाठ सिखाएगी

नियति तू कब तक खेल रचाएगी

कभी कुछ खोया था

कंही कुछ छुट गया था

कभी छन् से कुछ टूट गया था

भीतर जख्मो के कई गुच्छे हैं

गुच्छो के कई सिरे भी हैं

पर उनके जड़ो का क्या

तेरा ही दिया खाद्य  औ पानी था

नियति तू कब तक खेल रचाएगी

कंही कुछ मर रहा है

कंही कुछ पल रहा है

दावानल सा हर कहीं जल रहा है

क्या तुझे नहीं दिखाई दिया है

नियति तू कब तक हाहाकार  मचाएगी

बंद करो मानवता के साथ  

अपना क्रूर हास परिहास

नियति तू एक दिन पक्षताएगी

इंसां जब हिम्मत से जोर लगाएगी 

 उसी पल तू हार जाएगी

खुद से क्या फिर तू आँख मिला पायेगी

शर्म से क्या नहीं  तू  उस  दिन मर जायेगी

नियति तू कब तक खेल रचाएगी  

 

Views: 765

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Albela Khatri on June 4, 2012 at 10:46pm

नियति  के साथ   इतना ओजस्वी संवाद कर के आपने  लाखों लाख  लोगों के मौन को स्वर दिया है . इस महती कार्य के  लिए आपका  और  आपकी लेखनी का अभिनन्दन !

शानदार कविता .........जय हो

Comment by Rekha Joshi on June 4, 2012 at 7:16pm

Mahima ji ,bahut badhiya likha hae aapne 

क्या हम सचमुच हैं

तेरे ही कठपुतले

तू जैसा चाहेगी

वैसा ही पाठ सिखाएगी,badhai 

Comment by chandan rai on June 4, 2012 at 5:00pm
खुद से क्या फिर तू आँख मिला पायेगी
महिमा जी,
शर्म से क्या नहीं तू उस दिन मर जायेगी

नियति तू कब तक खेल रचाएगी
नियति की अच्छी खबर ली है आपने
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 4, 2012 at 4:18pm

स्नेही महिमा जी, सस्नेह 

नियति कि दी चुनौती वाह गजब के भाव. बधाई 

Comment by Yogi Saraswat on June 4, 2012 at 4:09pm

नियति तू एक दिन पक्षताएगी

इंसां जब हिम्मत से जोर लगाएगी 

 उसी पल तू हार जाएगी

खुद से क्या फिर तू आँख मिला पायेगी

शर्म से क्या नहीं  तू  उस  दिन मर जायेगी

नियति तू कब तक खेल रचाएगी 

नियति को हम हमेशा ही कठोर रूप में प्रस्तुत करते हैं ! नियति से ही तो हम हैं , नियति ही है जो हम आज हैं ! बहुत बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय महिमा जी !

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 4, 2012 at 7:27am

दावानल सा हर कहीं जल रहा है

क्या तुझे नहीं दिखाई दिया है

नियति तू कब तक हाहाकार  मचाएगी

 

niyati ke oopar saare iljaam madh diye aapne aur ye bhi bata diyaa ki insaani taakat jab apna jor lagayegi tab too haath malti rah jaayegi wah waah ..................umda rachna aapki


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 3, 2012 at 11:14pm

हौंसले बढ़ाती  हुई रचना जिसके दिल में इतना होंसला हो उसका नियति भी कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी झुक जायेगी उसके दम के सामने ...बहुत उम्दा भाव ..हाँ एक दो जगह टंकण त्रुटी आ गई हैं शायद पेस्ट करते हुए ठीक कर लें

Comment by MAHIMA SHREE on June 3, 2012 at 11:00pm

आदरणीय उमाशंकर जी .. रचना को पसंद करने और हौसला अफजाई के लिए आभारी हूँ . सधन्यवाद  

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 3, 2012 at 10:54pm

बहुत बढ़िया रचना आपके हौसले को सलाम

आपने नियति से लड़ने हिम्मत दिखाई

खुद से क्या फिर तू आँख मिला पायेगी

शर्म से क्या नहीं  तू  उस  दिन मर जायेगी

नियति तू कब तक खेल रचाएगी 

Comment by MAHIMA SHREE on June 3, 2012 at 10:31pm

आदरणीय लक्ष्मण सर जी .सादर नमस्कार

आपके उत्साहवर्धन के लिए आभारी हूँ  आपके विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए .  सधन्यवाद, स्नेह बनाये रखे.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service