For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खून के उफान को ....

टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को
छूटते हैं छूटने दो, खून के उफान को
हटो छोडो रास्ता अब, कफ़न सर पर लिये हैं
मौत से अब डर किसे है, मौत से लगते गले हैं
सह चुके अब ना सहेंगे, इस देश के अपमान को
टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को
विश्व में उपहास के, कारण बनाये जाते हैं
खद्दरों के भेष में, दीमक हजम कर जाते हैं
इस देश की संपत्ति और, इस देश के सम्मान को
छूटते हैं छूटने दो, खून के उफान को
आम आदमी यहाँ, हाशिए में होता है
जिंदगी कि दौड में, हर राह राह रोता है
कब समझ पायेंगे हम, इन नेताओं के स्वांग को
छूटते हैं छूटने दो खून के उफान को

Views: 540

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 11:57am

टूटते हैं टूटने दो, अब ह्रदय के तार को 
छूटते हैं छूटने दो, खून के उफान को 

सुन्दर पंक्तियाँ हैं. 

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 7, 2012 at 10:26pm

 सराहना के लिए विश्वजीत जी धन्यवाद आपको

Comment by Bishwajit yadav on June 3, 2012 at 10:58pm
हटो छोडो रास्ता अब, कफ़न सर पर लिये हैं
मौत से अब डर किसे है, मौत से लगतेगले है

उमा शंकर जी बहुत ही जोश पूर्ण रचना है
जय हो
Comment by UMASHANKER MISHRA on June 3, 2012 at 10:55pm

शुक्रिया महिमा जी

Comment by MAHIMA SHREE on June 3, 2012 at 10:37pm

वाह!!! आदरणीय उमाशंकर जी .. आपने तो जोश भर दिया .. खून में उबाल ला देने वाली ओजपूर्ण कृति के लिए आपको साधुवाद

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 3, 2012 at 7:29pm

 प्रिय संदीप जी आदरणीय  रेखा जी 

हौसला अफजाई के लिये आपको  धन्यवाद 

Comment by Rekha Joshi on June 3, 2012 at 5:48pm

उमाशंकर जी ,

हटो छोडो रास्ता अब, कफ़न सर पर लिये हैं 
मौत से अब डर किसे है, मौत से लगते गले हैं बढ़िया रचना ,बधाई |
Comment by UMASHANKER MISHRA on June 2, 2012 at 7:01pm

आदरणीय प्रिय अलबेला जी ,आदरणीय राजेश कुमारी जी ,

आदरणीय डॉ.सूर्य बाली जी,प्रिय बागी जी

आदरणीय कुशवाहा जी आपका शुक्रगुजार हूँ जो आपने इस

खाकसार को सराहा आपका यह प्यार हमें आसमान में सुराख़ बना देने

को  उत्प्रेरित करता है धन्यवाद ......

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 2, 2012 at 6:50pm

इस ओजपूर्ण रचना के लिए साधुवाद आपको साहब
बहुत खूब क्या बात है

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 2, 2012 at 5:20pm

आम आदमी यहाँ, हाशिए में होता है 
जिंदगी कि दौड में, हर राह राह रोता है 
कब समझ पायेंगे हम, इन नेताओं के स्वांग को 

आदरणीय उमाशंकर जी, सादर 

नेता के स्वांग को अपना आदर्श मानेंगे तो स्थिति ऐसी ही बनी रहेगी. सुन्दर रचना हेतु बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
16 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service