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जीवन तुझसे एक वर माँगू

जीवन तुझसे एक वर माँगू

पाप पुण्य से दूर 

जीवन की समझ माँगू 

एकाकी अगर सत्य हो तो 

तथागत बनने का वर माँगू

आवेश ही एक मात्र  मार्ग हो तो 

दुर्योधन का आवेश पाऊँ

क्षमा ही ध्येय हो तो 

युधिष्ठिर का मन पाऊँ 

समर्पण ही अगर सत्य हो तो 

समर्पण की धुरी पर जो कर्ण पिसा 

मैं भी समर्पित हूँ 

उपेक्षा अगर सत्य हो तो 

एकलव्य सा ध्यान चाहूँ

और 

अगर केशव की वाणी एक मात्र सत्य हो  तो 

चिर शांत हो अर्जुन बन जाऊं

जीवन तुझसे एक वर  माँगू

पाप पुण्य से दूर 

जीवन की समझ  माँगू 

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Comment by arunendra mishra on May 31, 2012 at 8:25pm

योगी जी ...प्रोत्साहन के लिए आभार ...

Comment by arunendra mishra on May 31, 2012 at 8:22pm

संदीप जी ...धन्यवाद् ...कोशिश की है ..!!

Comment by arunendra mishra on May 31, 2012 at 8:21pm

खत्री  जी ...बहुत बहुत धन्यवाद् ....आप जैसे बड़े भाइयो का आशीर्वाद बना रहे ...

Comment by arunendra mishra on May 31, 2012 at 8:19pm

डॉ. प्राजी जी ....आप का अभिवादन पा कर गौरवान्वित हुआ.. धन्यवाद्...!!

 

Comment by Yogi Saraswat on May 31, 2012 at 4:30pm

समर्पण ही अगर सत्य हो तो 

समर्पण की धुरी पर जो कर्ण पिसा 

मैं भी समर्पित हूँ 

उपेक्षा अगर सत्य हो तो 

एकलव्य सा ध्यान चाहूँ

एक एक पंक्ति दमदार , श्री अरुणेन्द्र मिश्र जी !

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 31, 2012 at 2:54pm

आपने बहुत उम्दा वर माँगा है जनकल्याण की भावना से ओतप्रोत...

Comment by Albela Khatri on May 31, 2012 at 12:36pm

वाह  अरुणेन्द्र मिश्रा जी वाह !
वाह वाह !
बहुत ही अभिनव रचना  रची आपने_____

समर्पण ही अगर सत्य हो तो 

समर्पण की धुरी पर जो कर्ण पिसा 

मैं भी समर्पित हूँ 

आनन्द आ गया ..बधाई

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 31, 2012 at 11:34am
जीवन तुझसे एक वर माँगू... बहुत खूबसूरत रचना, 
जीवन की समझ.... जो पाना चाहता है, हर हाल में पा जाता है.
(यहाँ अनंत का भण्डार है, हम जो भी पाना चाहते हैं, जितना पाना चाहते हैं, ज़िंदगी हमें उतना पाने का हर अवसर ज़रूर देती है... )
इस कविता में निहित सोच के लिए हार्दिक बधाई अरुणेन्द्र जी  

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