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या खुदा मेरी उल्फत को जिंदगी दे दे 
गम जुदाई काअब और सहा नही जाता |
तडप तडप के गुजारी है हर घड़ी हर पल ,
मेरी वफा का दिया जल जल के बुझा जाता है |
इंतजार और अभी,और अभी और अभी ,
सब्रे पैमाना अब लब से छुटा जाता है |
रात में यह दिल तन्हां डूब जाता है ,
मायूसियों के आलम में दम घुटा जाताहै 

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Comment by Yogi Saraswat on May 17, 2012 at 11:08am
तडप तडप के गुजारी है हर घड़ी हर पल ,
मेरी वफा का दिया जल जल के बुझा जाता है |
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ आदरणीय रेखा जी ! बहुत खूब
Comment by Rekha Joshi on May 16, 2012 at 9:22pm

dhnyvaad mahima ji

Comment by MAHIMA SHREE on May 16, 2012 at 9:18pm

आदरणीया रेखा जी ,नमस्कार .. क्या बात है .. इस बेबाक  अभिवयक्ति पर  बधाई आपको

Comment by Rekha Joshi on May 16, 2012 at 5:05pm

भावेश जी ,प्रोत्साहन के लिए बहत बहुत धन्यवाद |आभार 

Comment by Bhawesh Rajpal on May 16, 2012 at 4:48pm

वाह वाह  ! मेरे दिल के जज्बातों  को लफ्ज़  मिल गए !

बहुत-बहुत बधाई  आदरणीय रेखा जी !

Comment by Rekha Joshi on May 16, 2012 at 3:04pm

Thanks sandip ji 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 16, 2012 at 3:00pm

bahut sundar...........badhai aapko bahut bahut badhai ...


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 16, 2012 at 12:43pm

बहुत ही सादगी भरी सुन्दर सी अभिव्यक्ति है रेखा जोशी जी - बधाई स्वीकार करें। सिर्फ एक छोटी सी गुज़ारिश, "सब्रे पैमाना" व्याकरण की दृष्टि से सही नहीं है, यहाँ सही शब्द "पैमाना-ए-सब्र" है।

  

Comment by Rekha Joshi on May 16, 2012 at 11:55am

अरुण जी धन्यवाद ,आगे भी आप प्रोत्साहित करते रहना 

Comment by Abhinav Arun on May 16, 2012 at 11:27am

सच्चे जज़्बात की सच्ची अभिव्यक्ति हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीया रेखा जी !!

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