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"न जाने क्यूँ किसी को खल रहा हूँ"

न  जाने  क्यूँ  किसी  को  खल  रहा  हूँ ,
मै  अपनी  रह  गुज़र  पर  चल  रहा  हूँ ....

दीया  हूँ  हौसलों का इसलिए मै ,
मुकाबिल  आँधियों  के  जल  रहा  हूँ ....

मै  तेरे  नाम  की  शोहरत  हूँ  शाएद ,
इसी  बयेस  सभी  को  खल  रहा  हूँ .....

मुझे  तू  याद  रखे  या  भुला  दे ,
मै  तेरी  याद  में  हर  पल  रहा  हूँ ....

उसी  ने  रिश्ता -ए -दिल  तोड़   डाला ,
मै  जिसके  वास्ते बे -कल  रहा  हूँ ....

खुदा  का  शुक्र  है  ''रिजवान '' अब  तक ,
मै  अपनी  जुस्तुजू  में  चल  रहा  हूँ .....



"रिजवान खैराबादी"

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on May 5, 2012 at 7:50pm

बहुत खूब रिजवान साहब शानदार पुर असर ग़ज़ल के हर शेर जानदार हैं बधाई !!

 

Comment by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 5, 2012 at 7:35pm

आप सभी का  शुक्रिया......

Comment by ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi) on May 5, 2012 at 7:26pm

वाह... रिजवान जी बहुत खूब


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 5, 2012 at 6:27pm

मोहतरम मो. रिज़वान साहब, अश’आर पर दिली दाद कुबूल फ़रमायें.

दीया  हूँ  हौसलों का इसलिए मै ,
मुकाबिल  आँधियों  के  जल  रहा  हूँ .... 

इस हिम्मत को सलाम

 

उसी  ने  रिश्ता -ए -दिल  तोड़   डाला ,
मै  जिसके  वास्ते बे -कल  रहा  हूँ ....       

इस शे’र को ज़िन्दग़ी मिले. इसकी तासीर पुरअसर है. 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 5, 2012 at 5:05pm

वाह वाह वाह - मतले से मकते तक सभी अशआर बेहद खूबसूरत कहे हैं मोहम्मद रिजवान जी. ढेरों दाद हाज़िर है.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 5, 2012 at 4:43pm

दीया  हूँ  हौसलों का इसलिए मै ,
मुकाबिल  आँधियों  के  जल  रहा  हूँ ....

बहुत खूब . क्या बात कही आपने. बधाई. स्वागत भी आपका .
Comment by MAHIMA SHREE on May 5, 2012 at 2:46pm
न जाने क्यूँ किसी को खल रहा हूँ ,
मै अपनी रह गुज़र पर चल रहा हूँ ....
मन के भावो को व्यक्त करती खुबसूरत गज़ल के लए बधाई आपको

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