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अभिव्यक्ति - खामोश मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता !

अभिव्यक्ति - खामोश  मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता !

अपनों ने अगर पीठ पे मारा नहीं होता ,

दुनिया की कोई जंग वो हारा नहीं होता |

 

उनकी हनक से दौड़ने लगती हैं फ़ाइलें ,

रिश्वत  न दें तो काम हमारा नहीं होता |

 

है इश्क तो शक की दरो दीवार गिरा दो ,

बादल हो तो सूरज का नज़ारा नहीं होता |

 

चलती हुई कलम में इन्कलाब का दम है ,

शब्दों से खतरनाक शरारा नहीं होता |

 

हालात सिखा देते हैं कोहराम मचाना ,

खामोश  मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता |

 

बचना ज़रा की मिलते हैं  पैकिट में बंद लोग ,

भीतर के आदमी  का नज़ारा नहीं होता |

 

हर दौर में गैलीलियो को कैद मिली है ,

सच हर किसी की आँख का तारा नहीं होता |

 

उन छूटती साँसों को दो अपनों का प्यार भी ,

पेंशन की रकम ही से गुज़ारा नहीं होता |

 

तहजीब अदब और सलीका भी तो कुछ है ,

झुकता हुआ हर शख्स बिचारा नहीं होता |

 

हम भी नहीं हो जाते वही पीर कलंदर ,

गर सोच में ये मेरा -  तुम्हारा नहीं होता |

                   - अभिनव अरुण [15042012]

[ आत्मकथ्य :- साथियो !  लिखा ग़ज़ल सोच  कर ही है ; पर जानता हूँ यह उस्तादों की कसौटी पर शायद ही खरी उतरे | सो पहले खेद व्यक्त करता हूँ | इसे एक  कविता की तरह ही परखें - पढ़े - साहित्यिक  आनंद लें यही चाह है , बस | ]

 

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on May 16, 2012 at 1:21pm

परम आदरणीय श्री संपादक महोदय आपका स्नेह सर आँखों पर !! ऐसी टिप्पणियाँ मुझ जैसे नवोदितों को ऊर्जा देती है | सीखने का आनंद ऐसे माहौल में ही है |

इस समालोचना के द्वारा आपने इस ग़ज़ल को नयी ऊंचाई दी है |

हार्दिक आभार आपका !! आशीर्वाद मिलता रहे यही कामना है !!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 16, 2012 at 12:19pm

//अपनों ने अगर पीठ पे मारा नहीं होता ,
दुनिया की कोई जंग वो हारा नहीं होता | // अति सुन्दर - वाह.

//उनकी हनक से दौड़ने लगती हैं फ़ाइलें ,
रिश्वत न दें तो काम हमारा नहीं होता | // बिलकुल सत्य कहा.

//है इश्क तो शक की दरो दीवार गिरा दो ,
बादल हो तो सूरज का नज़ारा नहीं होता | // वाह वाह वाह वाह ! बेहद सुन्दर शेअर.

//चलती हुई कलम में इन्कलाब का दम है ,
शब्दों से खतरनाक शरारा नहीं होता | // क्या बात है - क्या बात है ! बहुत खूब.

//हालात सिखा देते हैं कोहराम मचाना ,
खामोश मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता | // हासिल-ए-ग़ज़ल शेअर, वाह . जवाब नहीं.

//बचना ज़रा की मिलते हैं पैकिट में बंद लोग ,
भीतर के आदमी का नज़ारा नहीं होता | // "पैकिट में बंद लोग" - लाजवाब ख्याल. .

//हर दौर में गैलीलियो को कैद मिली है ,
सच हर किसी की आँख का तारा नहीं होता | // बिलकुल सत्य कहा - वाह.

//उन छूटती साँसों को दो अपनों का प्यार भी ,
पेंशन की रकम ही से गुज़ारा नहीं होता | // दिल को छू गया यह शेअर, वाह वाह वाह.

//तहजीब अदब और सलीका भी तो कुछ है ,
झुकता हुआ हर शख्स बिचारा नहीं होता | // हासिल-ए-गजल शेअर, बाकमाल ख्याल और बेमिसाल अगायगी.  

//हम भी नहीं हो जाते वही पीर कलंदर ,
गर सोच में ये मेरा - तुम्हारा नहीं होता |// आय हय हय. लाजवाब शेअर. इस बहतरीन  ग़ज़ल के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें अरुण भाई जी.   

Comment by Abhinav Arun on May 6, 2012 at 1:57pm

हार्दिक रूप से आपके प्रति आभार श्री अजीतेंदु जी !!

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 6, 2012 at 12:35pm

हालात सिखा देते हैं कोहराम मचाना ,

खामोश  मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता |

बहुत बढ़िया पंक्तियाँ अरुण जी. बधाई.

Comment by Abhinav Arun on May 1, 2012 at 3:41pm

जय श्री राधे  आदरणीय श्री भ्रमर जी !! हार्दिक आभार ग़ज़लें आपको पसंद आयीं !!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 28, 2012 at 4:58pm

तहजीब अदब और सलीका भी तो कुछ है ,

झुकता हुआ हर शख्स बिचारा नहीं होता |

चलती हुई कलम में इन्कलाब का दम है ,

शब्दों से खतरनाक शरारा नहीं होता |

प्रिय अभिनव अरुण जी बहुत सुन्दर ...अच्छा सन्देश देती , सिखाती हुयी रचनाएँ ...जय श्री राधे .भ्रमर ५ 


Comment by Abhinav Arun on April 23, 2012 at 12:21pm

परम आदरणीय श्री प्रदीप जी सब आपके स्नेह का प्रभाव है जो थोडा कुछ लिख पा रहा हूँ सीखने  का क्रम जारी है सहयोग बना रहे !! आभार !!

Comment by Abhinav Arun on April 23, 2012 at 12:14pm

आदरणीया महिमा श्री जी हार्दिक आभारी हूँ जो ग़ज़ल आपको पसंद आई !!

Comment by Abhinav Arun on April 23, 2012 at 12:13pm
श्री राकेश जी हार्दिक धन्यवाद !!आप जैसे स्नेहिल साथी लिखने को प्रेरित करते रहते हैं आभार  !!
Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 21, 2012 at 11:11am

Bhai Arun ji, saadar, ham to hamesha se aapki gazal gayki ke kaayal rahe hian, aur punah aapne hamara man rakh liya, vah! bahut khub, man kar raha hai padhta hi rahun, saadar badhai

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