For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मन में मंदिर होता है

तब मन भी सुंदर होता है

दुःख तो आना जाना है

क्यूँ चिंता करता रोता है

दूजे पर क्यूं हँसता है

वही काटेगा जो बोता है

पाप करेगा भोझ भी उसका

जीवन भर दिल ढोता है

पहले सोचा होता तुने

दाग लगा तब धोता है

रातों को वो जागे है

दिन भर देखो सोता है

Views: 788

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 27, 2010 at 10:31am
अभिनव जी, आप अगर ग़ज़ल सीखने के ख्वाहिशमंद हैं और जनाब पुरषोत्तम आज़र साहब की शरण में हैं - तो आप सुरक्षित हाथों में हैं ! लेकिन ग़जल सीखने से पहले महफिली शिष्टाचार से वाकिफी भी आपके लिए निहायत ज़रूरी है जिसकी कमी आपकी टिपण्णी में साफ़ साफ़ झलक रही है ! जिस प्रकार की भाषा आपने वरिष्ठ सदस्यों से वार्तालाप में प्रयोग की है, उसको देखकर यह लगता है की आप किसी पूर्वधारणा से ग्रस्त हैं ! आपको चेतावनी दी जाती है कि आप अपनी इन फुकराना बातों के लिए खेद व्यक्त करें अन्यथा ओपन बुक्स ऑनलाइन पर आपकी सदस्यता को बरकरार रखना संभव नहीं होगा |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 27, 2010 at 10:04am
अभिनव भाई
मैंने आपको क्या कहकर तमाचा मारा उसे भी यहाँ पर लिख दीजिये|

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 27, 2010 at 9:55am
अभिनव भाई, खुश रहिये,
कुछ बातें मैं कहना चाहता हूँ ------------------
(१) भाई शब्द मे मुझे नहीं लगता कोई बुराई है, भाई कहने से आत्मीयता के भाव आते है, अनुज और भाई(अपने से छोटा) एक दुसरे के पर्यायवाची है, अपने से बड़े को संबोधित करने के लिये भाई साहब,अग्रज या भईया कहते है और छोटों के लिये भाई या अनुज कहा जाता हैं |
(२) आपने कहा "मुझे नही लगता कि आप आदरणीय आज़र साहिब द्वारा लिखा ग़ज़लशाला को पढते हो"
मैं आप से बड़ा हूँ और आपने "पढते हो" कहा क्या यह उचित है ?
(३) मैं जितना सिखा हूँ उस हिसाब से ग़ज़ल लिखी नहीं जाती बल्कि कही या पढ़ी जाती है |
(४) आपका यह पोस्ट कही से भी ग़ज़ल नहीं है, इस लिये कविता मैने लिखा है और कविता , गीत बनाई जाती है , लिखी जाती हैं |
(५) यदि आपको लगे कि इस पोस्ट मे आप ने ग़ज़ल कही है तो आप जरूर लिखियेगा कि यह ग़ज़ल ही है |
Comment by abhinav on September 27, 2010 at 9:17am
आदरणीय राणा जी
नमस्कार
आपको एसा नही लगता कि जैसे आपने मुझको तमाचा मार दिया हो!
लाइव तरही मुशायरा आपका बहुत रोचक है लेकिन इसका मतलब यह नही है की आप सबसे बडे उस्तादों में एक हो!
Comment by abhinav on September 27, 2010 at 9:03am
आदरणीय गणेश जी !
सादर नमस्कार
आप का आशीर्वाद मिला जिसके लिये मैं आप का आभार प्रकट करता हूं
मुझे नही लगता कि आप आदरणीय आज़र साहिब द्वारा लिखा ग़ज़लशाला को पढते हो उन्होने लिखा है ग़ज़ल या तो लिखी जाती है
या कही जाती है यह कोई खाना या मकान तो है नहीं जो आप बना रहे हो!
यदि आप भाई न लिख कर मेरे नाम से पहले अनुज व प्रिय लिखते तो मुझे और खुशी होती!
आपका अनुज
Comment by abhinav on September 27, 2010 at 8:55am
आदरणीय नवीन जी !
सादर नमस्कार
आप का आशीर्वाद मिला जिसके लिये मैं आप का आभार प्रकट करता हूं
यदि आप मेरे नाम से पहले अनुज व प्रिय लिखते तो मुझे और खुशी होती!
Comment by abhinav on September 27, 2010 at 8:46am
आदरणीय गुरु "आज़र साहिब जी !
चरण वन्दना !
आप का आशीर्वाद पा कर मैं गद्द-गद्द हो गया हूं सदा किरपा बनाये रखना मैं आप की ग़ज़लशाला को ध्यान पूर्वक पढ रहा हूं!
आप ने लिखा है (भाई) शब्द साहित्यक नहीं मैं आप से सहमत हूं!(छोटे मुख बडी बात) यदि भाई के स्थान पर अपने से बडो को भाई साहिब,आदरणीय, जनाब व अपने से छोटो को नाम से पहले अनुज व प्रिय से सम्बोधन किया जाए तो कितना सुंदर प्रभाव पडता है !
आपका स्नहे पात्र
अभिनव खत्री

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 21, 2010 at 8:48am
अभिनव भाई, बहुत बढ़िया कविता लिखे है आप , मुझे अच्छा लगा आपका लेखन, जैसा की आपने मुझे बताया था कि यह आपकी पहली रचना है, और इतना बढ़िया बना है मतलब साफ़ है आप मे प्रतिभा है बस लिखते रहे और बाकी रचनाओं को पढते रहे |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 20, 2010 at 10:14pm
बहुत सुन्दर!!!
अच्छी कविता है
लिखते रहे|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
13 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service