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मन मंथन

(गणबद्ध)                  मोतिया दाम छंद

सूत्र = चार जगण (१६ मात्रा) यानि  जगण-जगण-जगण-जगण (१२१ १२१ १२१ १२१)

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दिखी  जब  देश  विदेश  अरीत.

दिखा शिशु भी हमको भयभीत .

तजें हम  द्वैष  बनें  मनमीत.

लिखूँ कुछ काव्य अमोघ पुनीत..

.

चढ़ा जब  द्रोह  यहाँ  परवान.

चला जब देश अलंग विवान.

दिखे चुप आज सुदेश दिवान.

दुखी मन खोज अनूप सिवान..

.

चली तब लेखन की असिधार.

बनी यह रीत  अरीत  अधार.

मिला कुइ अंत न और सुधार.

घिरी यह नाव पड़ी मझधार..

.

मिटी तहजीब  मिटी  हर  रीत.

किया फिर क्यों हमने यह प्रीत.

थका लिख आज सुदेश कुरीत.

लिखे हमनें नित ही नवगीत..

.

-------------------------------------------------------------------------------

अरीत = कुप्रथा या कुरीति

अलंग = की ओर

विवान = अर्थी

सिवान = परिसीमा

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Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 11:01pm

आदरणीय बागी सर इस मंच पर आने के बाद जो सुखद अनुभव मुझे हुआ है उस के लिए मै निःशब्द हूँ , मै इस मंच का सदस्य होने पर गर्व महसूस करता हूँ जहाँ सहज भाव से आप लोगों से कुछ सीखने को मिलता है.उत्साह वर्धन के लिए ह्रदय से आभार

                                                                                सादर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 6, 2012 at 10:49pm

छंदों पर आपको काम करते हुए देखना सचमुच एक बहुत ही सुखद एहसास है, शैलेन्द्र जी आप जैसे नवांकुरों को पाकर यह मंच और भी समृद्ध हुआ है, बहुत ही खुबसूरत रचना , बधाई स्वीकार करें |

कृपया ध्यान दे...

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