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देखो,
यह कलयुगी मानव,
कैसा है ?
यह कलयुगी मानव !
जिसका जीवन यंत्रो जैसा,
आखो में लालच है,
लालच इसकी न चेहरे पर भाव !
झूठ इसकी है बुनियाद !
बईमानी इसकी है आदत !
धोखा इसका है स्वभाव !
हर पल में इसका अभिनय बनता,
बातो में इसके छलावा पन !
हर पल में नया चरित्र है बनता !
देख कर अवसर वार यह करता !
रहता हरदम चोक्न्ना देखो,
यह कलियुगी मानव !
कैसा है ?
यह कलयुगी मानव !!

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 19, 2010 at 10:30am
आदरणीया पूजा सिंह जी, बहुत ही सही विवेचना किया है आपने इस कलयुगी मानव का, सरल शब्दों का प्रयोग इसे सुंदर कृति का रूप देते है , बधाई स्वीकार करे इस बेहतरीन अभिव्यक्ति पर, उम्मीद करते है कि आगे भी आप की और रचनायें तथा अन्य रचनाओं पर आपकी बहुमूल्य विचार पढ़ने को मिलेंगे |

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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