Comment
ना तीर चला , ना ही तलवार चली
bahut khoob. badhai.
आदरणीय दिलबाग जी,
बहुत ही सुन्दर प्रयास| ख़ूबसूरत भाव| कहीं कुछ कमी सी रह गयी ऐसा लगता है| साभार,
आपने मान दिया विंध्येश्वरीजी.
इसी पेज के धुर नीचे (एकदम आखीर में) चार लिंक हैं, उन्हें समझ कर देखें और साथ ही इसी मंच पर आदरणीय तिलकराज जी की कक्षा में दाखिला लेलें.
विन्ध्येश्वरी जी, होली बीत गयी.
आप ग़ज़ल को इतना हल्का न लें. वैसे इसमें इतना कठिन कुछ भी नहीं है, मग़र विधा थोड़ी अलग है सो यहाँ अनायास कुछ भी नहीं होता. समय ही नहीं खुद को भी खपाना होता है. इशारा काफ़ी होना चाहिये, है न ?
बागी जी आपने तो मेरा पत्ता ही साफ कर दिया,मतलब अब मैं समीक्षा न करूँ।पर मुझे तो समीक्षा करनी ही है एनी हाउ,कैसे भी।बस गजल की बारीकियों को सीखने के लिए आप मुझे कोई और तरीका बताने का कष्ट करें,हां।
रही बात 'हिन्दुस्तानी सरल तरीका ..........वाले कमेंट की तो वहां मुझसे भूल हुई और सुधार ये है कि मुझे कहना चाहिए था कि हिन्दुस्तानी जुगाड़ से काम चलाने पर ज्याद फोकस करता है और मैं भी हिन्दुस्तानी हूं।(सर ये व्यंग्य टिप्पणी थी इस पर बुरा मानने जैसा कुछ नहीं है।)
दिलबाग़जी, आपकी प्रस्तुति ग़ज़ल की विधा में रह गयी बँधते-बँधते.
मेरी तो अबसे सभी ग़ज़लकारों और शायरों से गुज़ारिश होगी कि जिस बह्र में ग़ज़ल कह रहे हैं उसके वज़्न को भी ग़ज़ल के ऊपर लिख दिया करें. इससे सभी को लाभ होगा. सीखने वालों को भी और सिखाने वालों को भी.
भाई विधेश्वरी जी , जिस विधा की समझ ना हो उसकी समीक्षा तो ना कीजिये, जब आपको ग़ज़ल विधा की मूलभूत बातें मालूम नहीं है तो उट पटांग टिप्पणी न दें, एक बात और ...हिन्दुस्तानियों को आज तक कोई चीज आसानी से नहीं मिली है , हम मेहनत से ही हासिल करते है,
सादर !
विन्देश्वरी जी, सबसे पहले तो आप ग़ज़ल शिल्प के सम्बन्ध में ज्ञान ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर बाटम में दिए गए लिंकों पर जाकर एकत्र कर ले, उसके बाद आप जान जायेंगे की तुकांत को उर्दूं में काफिया कहते है या बहर |
जहाँ तक विर्क साहब की ग़ज़ल में प्रयुक्त तुकांत (काफिया) है वो सही है |
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