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क्यों आपको समझ नहीं आता हैं ,

हमे खाना नहीं मिलता हैं ,
अब जीना मुस्किल हो रहा ,
बाह रे हिंद के सासक ,
हम खाए बिना मरते हैं ,
आप के अन्य सड़ अब रहा ,
सडा कर आप मंगवाएंगे ,
बिक्री के लिए टेंडर ,
सस्ते में निकल जायेगा ,
ये अनाज सब सड़ कर ,
हुजुर सड़े हुए से भी ,
अपना पेट भर जाता हैं ,
आप हमें बर्बाद करने की ,
जुगत अच्छी बनाई हैं ,
शराब बनेगे इन सब की ,
जिसको आप ने सडाइ हैं
आप ही सोचो हम गरीबो पे ,
दोहरा माड पर जाता हैं ,
एक दिन बाजार में जब ,
ये शराब बन के आता हैं ,
जीना मुस्किल हो जाता हैं ,
क्यों आपको समझ नहीं आता हैं ,

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Comment

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Comment by Rash Bihari Ravi on September 20, 2010 at 4:56pm
dhanyabad ganesh ji

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 17, 2010 at 10:44pm
हुजुर सड़े हुए से भी ,
अपना पेट भर जाता हैं ,
बहुत सही कहा है आपने गुरु जी , पर वातानुकूलित कमरों मे रहने वालों को ये बात कभी समझ मे नहीं आयेगी ,

कृपया ध्यान दे...

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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