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तन्हाई बोली .. ! !

.

मैं

और

तन्हाई

लड़ते रहते हैं

कभी बिखरते

कभी संवरते

रहते हैं.

ओ तन्हाई !

तुम क्यों

दुःख -पीड़ा को

रखती हो अपने साथ

फिरती हो यहाँ वहां

लिये हाथों में हाथ .

तन्हाई मुस्काई

कुछ इठलाई

बोली ...

बचपन की यादें

मोहब्बत के बातें

कहानी कहती नानी

रिमझिम बरसता पानी

पहली मुलाकात

महबूब की बात

उनका इतराना

रूठना मनाना

सब के सब

अंधेरों में खो जाते हैं

तन्हाई बगैर

याद नहीं आते हैं.

दिलों के रिश्ते जब

पुराने पड़ जाते हैं

कुछ समय की

चोट से सड़ जाते हैं.

तन्हाई

जब फैलाती है बाहें

तो खोल देती है

दिलों की बंद राहें .

मेरे मन

मेरे दोस्त

मेरा साथ कभी मत छोडना

ख़ुशी पानी हैं तो

तन्हाई का साथ

कभी मत छोडना

.

.

.

.

तन्हाई का साथ

कभी मत छोडना.

 

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 15, 2012 at 12:43pm

सार्थक प्रयास हेतु सादर बधाई.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2012 at 11:57am

ख़ुशी पानी हैं तो

तन्हाई का साथ

कभी मत छोडना

सुन्दर भाव एवं प्रस्तुति. बधाई.

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on March 14, 2012 at 5:34pm

धन्यवाद सर्व श्री अरुण कुमार पाण्डेय जी , गणेशजी बागी जी ,संदीप दिवेदी जी ..आपके आशीर्वचन ..मेरा सौभाग्य ..साथ साथ चल रहे है मेरी जिंदगी में .

Comment by Abhinav Arun on March 14, 2012 at 1:38pm

सच कहा डॉ अजय जी तन्हाई में ही वो अवसर आता है जब हम अपने अतीत से बातें कर पाते है ... अपनी खुशियों और ग़म को खुद से ही साझा कर पाते है | मधुर अभिव्यक्ति हेतु हार्दिक अबधाई ||


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 14, 2012 at 1:24pm

निश्चित ही गहराई तक अपनी छाप छोडने में सफल है यह रचना, दुःख ना हो तो सुख का महत्व समझ में नहीं आता उसी प्रकार तन्हाई भी आवश्यक है मिलन की याद को सहेजने के लिए, अच्छी रचना पर बधाई स्वीकार हो ।

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 14, 2012 at 12:09pm

डॉ. साहब तन्हाई क्या क्या कहती है और क्या-क्या सहेज कर रखती है यह सब आपकी कविता बहुत सुन्दर ढंग से परिभाषित कर रही है| सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई..

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