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पास हो मेरे ये कितनी
बार तो बतला चुके तुम !
कौन कहता जा चुके तुम ?

आँख जब धुंधला गई तो
मैंने देखा
तुम ही उस बादल में थे ,
और फिर बादल नदी का 
रूप लेकर बह चला था  ,
नेह की धरती भिगोता
और मेरी आत्मा हर दिन हरी होती गई !
उसके पनघट पर जलाए
दीप मैंने स्मृति के !
झिलमिलाते , मुस्कुराते
तुम नदी के जल में थे !
जब भी दिल धडका मेरा तब
तुम ही उस हलचल में थे !

तुम चले आते हो छत पर
रात का श्रृंगार करने ‘
चाँद बनकर
और सूरज को सजाते हो
उजालों से !
जगाते हो मुझे शीतल चमकती-
रोशनी की उँगलियों से !

बृक्ष की छाया बने तुम
जब दुखों के जेठ में
मैं जल रहा था !
सोख लेते हो तपिस
तुम दोपहर के सूर्य की भी !

मैं तेरी आवाज सुनता हूँ
हवा की सरसराहट में !
और ये ऋतुएं तुम्हारे
नाम की चिट्ठी मुझे
देती रही है !
मैंने भी जो खत लिखे
तेरे लिए
हर शाम
नदियों के हवाले कर दिया है !
मिल गए होंगे तुम्हे तो ?

अब जुदा हम हो न पाएँगे कभी भी ,
इस तरह अपना चुके तुम !
कौन कहता जा चुके तुम ?

मर चुका हूँ मैं तुम्हारे साथ साथी
और तुम जिन्दा हो अब भी
इस ह्रदय में पीर बनकर
इस नयन में नीर बनकर !

.................................. अरुन श्री !

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Comment

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Comment by Arun Sri on February 2, 2012 at 10:27am

आदरणीय सौरभ सर ,  एक बार फिर से आपका ह्रदय की गहराइयों से धन्यवाद ! यदि कमियों को स्पष्ट रूप से इंगित करें तो कृपा होगी !

Comment by आशीष यादव on February 1, 2012 at 12:38pm
Sundar rachna hetu badhai.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 31, 2012 at 9:15pm

भावुक शब्दों की लड़ियाँ पढ़ने में अच्छी लगती है. मुझे भी लगीं. कविता का तथ्य कोमल है.

इस हेतु आपको हार्दिक बधाई. 

लेकिन कहना कि प्रस्तुत रचना निर्दोष है, ऐसा संभव नहीं हो सका है. कई तरह के प्रयास आवश्यक हैं, अरुणजी.

कमियों की ओर से आँखें फेर लेना आपके कवि-कर्म के प्रति पाठकीय नृशंसता होगी. आप से अनुरोध है कि व्याकरण के सापेक्ष पंक्तियों को निर्दोष रखने की हरसंभव कोशिश करें. 

शुभेच्छा.

Comment by Arun Sri on January 31, 2012 at 8:08pm

धन्यवाद राजेश कुमारी मैम , मेरी कविता का दर्द आपके दिल तक पहुँच सका ये एक उपलब्धि है !

Comment by Arun Sri on January 31, 2012 at 8:06pm

धन्यवाद सीमा मैम , आपकी सराहना ने इस रचना को सजीव कर दिया !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 31, 2012 at 8:00pm

bahut marmik dil ko choo gai aapki yeh rachna.

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