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कोयलिया जब गाती है

चल झूठ रूठना है तेरा

आंखें सब बतलातीं है

कोयलिया जब गाती है

याद मीत की आती है

 

आँखों से अब ना आस गिरा

बातों पे रख विश्वास जरा

जाने दे मत रोक मुझें

सर पे दुनियां दारी है

कोयलिया जब गाती है

याद मीत की आती है

 

न तू भूलीं न मैं भुला

जब झूलें थे सावन झुला

मौसम अब के बरसातीं है

कोयलिया जब गाती है

याद मीत की आती है

 

चलतें थे तट पे साथ प्रिये

नटखट हाथों में हाथ प्रिये

लहरें तब भी आती थी

लहरें अब भी आती है

कोयलिया जब गाती है

याद मीत की आती है

 

तू कितनीं है दूर बड़ी

है कैसी ये मजबूर घड़ी

सपनोँ में तू जब आती है

मुझकों बड़ा सताती है

कोयलिया जब गाती है

याद मीत की आती है

: शशिप्रकाश सैनी 

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Comment

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Comment by shashiprakash saini on January 22, 2012 at 5:00am

सराहना हेतु आभार गणेश जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 21, 2012 at 4:09pm

//तू कितनीं है दूर बड़ी

है कैसी ये मजबूर घड़ी

सपनोँ में तू जब आती है

मुझकों बड़ा सताती है//

बहुत खूब शशि जी , वियोग श्रृंगार से सजी यह रचना अच्छी लगी, बधाई स्वीकार करें |

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