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वीर --पथ और मंजिल

गिरने से क्यों डर रहा
चलना तो तुझी को वीर |
डूबने से क्यों डर रहा
तबियत से लहरें तो चीर |

मार्ग तो प्रशस्त है
तो काहे की बिडम्बना
आए अगर विषमता
दिखा दे अपनी आकुलता
बेचैनी और व्याकुलता

याद कर अपनी मकसद को
झोंक दे उसमे खुद को
जलने से क्यों डर रहा
बहा दे उस अनल पे नीर

सुर तू ही शोर्य है
तू ही वो किरण है
कर्म पथ पे चल जरा
कहा तेरे चरण है
बेधने से क्यों डर रहा
फाड़ दे उस घटा की चीर

चुभने से क्यों डर रहा
पाना तो तेरी है पीर
न पाने की क्यों सोच रहा
पाना तो तुझी को वीर
गिरने से क्यों डर रहा
चलना तो तुझीं को वीर
डूबने से क्यों डर रहा
तबियत से लहरें तो चीर |

...........................................................रीतेश सिंह
22-08-10



http://rit-anjanasafar.blogspot.com/

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Comment by Biresh kumar on August 24, 2010 at 4:36pm
jabardast

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 23, 2010 at 9:56pm
चुभने से क्यों डर रहा
पाना तो तेरी है पीर
न पाने की क्यों सोच रहा
पाना तो तुझी को वीर
वाह रितेश जी वाह, कमाल की रचना है, अच्छी कविता, सुंदर भाव, बधाई,

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