For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

व्यंग्य - रावण के दर्द को समझिए

हर साल न जाने कितनी जगहों में रावण का दहन किया जाता है और खुशियां मनाते हुए पटाखे फोड़े जाते हैं, मगर रावण के दर्द को समझने की कोई कोशिश नहीं करता। अभी कुछ दिनों पहले जब दशहरा मनाते हुए रावण को दंभी मानकर जलाया गया, उसके बाद रावण का दर्द पत्थर जैसे सीने को फाड़कर बाहर आ गया। रावण कहने लगा, उसकी एक गलती की सजा कब से भुगतनी पड़ रही है। गलती अब प्रथा बन गई है और पुतले जलाकर मजे लिए जा रहे हैं। सतयुग में की गई गलती से छुटकारा, कलयुग में भी नहीं मिल रहा है।
रावण ने अपना संस्मरण याद करते हुए कहा कि भगवान राम ने अपने बाण से उसका समूल नाश कर दिया था। सतयुग में जो हुआ, उसके बाद पूरी करनी पर, आज की तरह पर्दा पड़ जाना चाहिए था। जिस तरह देश में भ्रष्टाचार, सुरसा की तरह मुंह फैलाए बैठा है। महंगाई, जनता के लिए भस्मासुर साबित हो रही है। इन बातों पर कैसे सरकार पर्दा डाले जा रही है। ये अलग बात है कि लाख ओट लगाने के बाद भी तालाब में उपले की तरह बाहर कुछ न कुछ आ ही जा रहा है। दूसरी ओर रावण की एक करनी के बाद, कितनी मौत मरनी पड़ रही है। जगह-जगह वध होने के बाद रावण रूपी माया खत्म ही नहीं हो रही है, लेकिन देश को विपदाओं का दंश झेलने पर मजबूर करने वाली सरकार का वध क्यों नहीं हो रहा है। रावण का मर्म में समझ में आता है, लेकिन उसकी तरह जनता हामी भरे, तब ना।
रावण के पुतले को जलाने के बाद हमारी संतुष्टि देखने लायक रहती है, जैसे हमने पूरे ब्रम्हाण्ड में फतह हासिल कर ली हो। जिस तरह रावण ने अपने तप से हर कहीं वर्चस्व स्थापित कर लिया था। वे चाहते तो हवा चलती थी, वो चाहतेे तो समय चक्र चलता था। इतना जरूर है कि लोगों के शुरूर के आगे रावण भी इस कलयुग में नतमस्तक नजर आ रहा है। यही कारण है कि वह अपने दर्द को छिपाए फिर रहा है। भला, अनगिनत जगहों पर हर बरस जलाने के बाद किसे दर्द नहीं होगा, किन्तु वे परम ज्ञानी हैं, इसलिए अपने दर्द को सीने में लादे बैठे हैं। रावण को दर्द सालता जरूर है और टीस से कराह पैदा होता है, लेकिन अब किया भी क्या जा सकता है ? मनमौजी लोगों के आगे उनकी कहां चलने वाली है। वे चाहें तो साल में नहीं, हर दिन रावण दहन कर दे, लेकिन केवल पुतले का। ऐसा हमारे राजनीतिक दल के नेता करते भी हैं, कुछ हुआ नहीं, ले आए किसी का पुतला बनाकर और दाग डाले। इस बात से कोई इत्तेफाक नहीं रखता कि जैसे हम रावण के पुतले जलाते हैं, वैसे ही हम उन लोगों का समूल नाश करने की सोंचे, जो भ्रष्टाचार की जड़ मजबूत किए जा रहे हैं। ऐसे लोगों की सफेदपोश शख्सियत के आगे हम नतमस्तक नजर आते हैं, जैसे रावण के पुतले हमारे सामने। यही सब बात है, जिस दर्द का अहसास, रावण को हर पल होता है।
हमारे देश की सरकार थोड़ी न है, जिसे दर्द का अहसास ही नहीं। गरीब चाहे जितनी भी गर्त में चले जाएं, महंगाई जितनी चरम पर पहुंच जाए। भ्रष्टाचार से देश में जितना भी छेद पड़ जाए, इन बातों से हमारी सरकार कहां कराहने वाली है। ये सब महसूस करने के लिए देश में भूखे-नंगे गरीबों की जमात, जो है। गरीबों की किस्मत, रावण से कम नहीं है, रावण को एक गलती का खामियाजा न जाने कब तक भुगतना पड़ेगा, वैसे ही सरकारी कर्णधारों के रसूख के आगे बेचारी जनता की लाचारगी, वैसी ही है। पुतले के रूप में खड़ा रावण खुद को जलते हुए देखता है और जुबान भी नहीं खोल पाता और उफ भी नहीं कर पाता। यही कुछ हाल, गिने जा सकने वालों के आगे करोड़ों लोगों का है।
यही कहानी अनवरत चल रही है। सरकार, गरीबों का दर्द नहीं समझती और हम रावण का दर्द नहीं समझते। बस, बिना सोचे-समझे उसे हर साल जलाए जा रहे हैं। कोशिश हमारी यही होनी चाहिए, पहले मन के रावण को मारें, फिर देश के रावणों का नाश कर खुशियां मनाएं। इसके लिए हमारा सबसे बड़ा हथियार है, वो है हमारी वोट की ताकत। हमें पुतले पर नहीं, जीते-जागते सफेदपोशों पर चोट करनी चाहिए। तब देखें, ‘रावण’ की तरह ‘रीयल लाइफ के रावणों’ को दर्द होता है कि नहीं ?

राजकुमार साहू
लेखक व्यंग्य लिखते हैं।

जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा . - 074897-57134, 098934-94714, 099079-87088

Views: 434

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ganesh lohani on October 11, 2011 at 11:54am

सही कहा आपने
कोशिश हमारी यही होनी चाहिए, पहले मन के रावण को मारें, फिर देश के रावणों का नाश कर खुशियां मनाएं। इसके लिए हमारा सबसे बड़ा हथियार है, वो है हमारी वोट की ताकत। हमें पुतले पर नहीं, जीते-जागते सफेदपोशों पर चोट करनी चाहिए। तब देखें, ‘रावण’ की तरह ‘रीयल लाइफ के रावणों’ को दर्द होता है कि नहीं ?

Comment by ganesh lohani on October 11, 2011 at 11:53am

कोशिश हमारी यही होनी चाहिए, पहले मन के रावण को मारें, फिर देश के रावणों का नाश कर खुशियां मनाएं। इसके लिए हमारा सबसे बड़ा हथियार है, वो है हमारी वोट की ताकत। हमें पुतले पर नहीं, जीते-जागते सफेदपोशों पर चोट करनी चाहिए। तब देखें, ‘रावण’ की तरह ‘रीयल लाइफ के रावणों’ को दर्द होता है कि नहीं? सही कहा आपने |

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आर्ष ऋषि का विशेषण है. कृपया इसका संदर्भ स्पष्ट कीजिएगा. .. जी !  आयुर्वेद में पानी पीने का…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service