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हर प्रश्न का हल भी वो है
और
जटिल प्रश्नों से भरी उलझन भी वो है........
क्या है वो.....
जीवन की परिभाषा वो
मृत्यु की परछाई वो
जीवन तो पहले भी था
अब जीवन की सार्थकता भी वो है.......
क्या है वो......
बिंदिया की चमक वो
कंगन की खनक वो

शृंगार तो सजाता पहले भी था
अब शृंगार की चमक भी वो है
क्या है वो.....
दिल की धड़कन भी वो
चेहरे की ख़ुशी भी वो
ख़ुशी पहले भी थी
पर ख़ुशी की खनक भी वो
क्या है वो......
एक अनसुलझा एहसास
या अनकही पहली
क्या है वो....
जो होकर भी नहीं है
क्या है वो.....
प्रश्नों का हल या
जटिल सी उलझन.......

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 15, 2011 at 5:15pm

जो है न्यारा, उसे उभारा..  

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्चजगत्यांजगत् ..   

इंगितों से सजी-धजी सधी रचना.. बधाई.

 

Comment by Avanish Tiwari on July 28, 2011 at 5:31pm
hmmmmmmmm,

sahi h
Comment by Yogyata Mishra on July 28, 2011 at 5:03pm

thnx...bas kuch shabdo ko sajane ki koshish ki hai...thnx to u all for ue appreciation....

Comment by sangeeta swarup on July 28, 2011 at 3:37pm

मन की उलझन को खूबसूरती से लिखा है ... 

Comment by Bishwajit yadav on July 28, 2011 at 1:09pm

keye hai wo.............

batye to sahi.........

bahut badeya rachana hai............


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 28, 2011 at 10:40am

क्या है वो.....
प्रश्नों का हल या
जटिल सी उलझन.......

 

वाह बहुत ही सुंदर रचना, एक रहस्यमयी रचना, उलझनों में उलझते , सवालों से घिरे कब रचना समाप्त हुई पता ही न चला, बधाई आपको |

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