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दोहा मुक्तक .....

दोहा मुक्तक 

मन को जब मन में मिली , मन चाही पहचान ।
मन  में   जागे   प्यार   के, अनजाने    तूफान ।
मन  की  मोहक  कल्पना, मन के  सुन्दर तीर -
मन ही मन मुस्का रहे, मन  के  सब  अरमान ।
                      * * *
पागल  इच्छा  सो   गई,  स्वप्न  हुए  साकार ।
चातक  नैनों  को  मिला, तृष्णा  का  उपहार ।
शापित अभिलाषा हुई, मन को मिला न मीत -
क्षीण  बिम्ब  सब हो  गए, धधक  पड़े शृंगार ।

सुशील सरना / 22-4-23

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on May 19, 2023 at 2:18pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 15, 2023 at 11:06pm

आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहा मुक्तक हुए हैं. इस प्रस्तुति हेतु  हार्दिक बधाई. सादर 

कृपया ध्यान दे...

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