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आचार्य शीलक राम's Blog (4)

व्यवस्था के नाम पर

कोई रोए, दुःख में हो बेहाल

असहाय, असुरक्षित, अभावग्रस्त

टोटा संगी-साथी, हो कती कंगाल

अत्याचार, अव्यवस्था से त्रस्त

किसी को क्या फर्क पड़ता है ।



यहां-वहां घूमे, दुःख के आंसू पीए

गिड़गिड़ाए, झुके, करे…

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Added by आचार्य शीलक राम on December 8, 2022 at 8:00pm — 1 Comment

मौन

              मौन

                          आचार्य शीलक राम

सरल-सहज है तुम्हारी सूरत

देवलोक की जैसे कोई मूरत

मूरत होकर भी अमूर्त लगती…

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Added by आचार्य शीलक राम on December 1, 2022 at 9:31pm — 1 Comment

स्वप्न अधूरे

स्वप्न अधूरे, भूखा पेट

होने को है, मटियामेट

कड़ी मेहनत, कड़े प्रयास

फिर भी बची न कोई आस।1

अनगिनत ग्रंथ, आंखें फोड़ी

मम जीवन, सम फूटी कौड़ी

सब कुछ किया, व्यर्थ जा रहा

कौन दुःख, मैंने न सहा । 2

देर तक पढ़ना, ऊंचे अंक

बेरोजगारी के, फंसा हूं पंक

कर्म का नियम, बना है निष्फल

हर पैड़ी पर, हुआ हूं असफल ।3

ऊंची-ऊंची, उपाधि अर्जित

अभिनव किया, बहुत कुछ सृजित

फिर भी यहां, नकारा बना हूं

अभाव, दुःखों से, कती सना हूं । 4

घर बैठा हूं,…

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Added by आचार्य शीलक राम on December 1, 2022 at 9:30pm — No Comments

"बारहमासा"

"बारहमासा"

"चैत्र" मे चित चिंतित, चंचल चहु चकोर।

प्रिया बिन सब सूना लगे, ना सुझे कौर॥

"वैशाख" वैरी विष समान, वल्लरी बन विलगाय।

दोबारा फूल खिलेंगे तभी, अनुकूल रितु को पाय॥…

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Added by आचार्य शीलक राम on November 30, 2022 at 9:00pm — 4 Comments

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