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ग़ज़ल - जो हसीनों से दिल लगाते हैं

ग़ज़ल
जो हसीनों से दिल लगाते हैं
वो हमेशा फरेब खाते हैं
सिर्फ़ कहते हैं वो यही है ग़म
मुझको अपना कहाँ बनाते हैं
ज़द में उनका मकां भी आएगा
जो पड़ोसी का घर जलाते हैं
बेवफ़ाई है आपकी फ़ितरत
हम तो करके वफा निभाते हैं
दिल में उठती है इक क़यामत सी
जब ख़यालों में उनको लाते हैं
पूछता ही नहीं उसे कोई
वो नजर से जिसे गिराते हैं
होश रहता नहीं हमें तस्दीक
उनसे जब भी नजर मिलाते हैं

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 

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Comment by Samar kabeer on September 15, 2022 at 4:37pm

जनाब तसदीक़ अहमद साहिब आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I 

कृपया ध्यान दे...

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