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क्या?

क्या कहा तुमने ?

अब और जी ना पाओगे

चल पड़े हो लम्बे सफर पर

अब कभी लौट के ना आओगे

मैंने देखा है तुम्हे

 

रात को छुप के तन्हाई में रोते हुए

दर्द को सहते और खून थूकते हुए

अब तुम हर रोज़

थोड़ा थोड़ा मरते जा रहे हो

साँसे कम हो रही तुम्हारी

जान हमारी निकाले जा रहे हो

कई बार टोका

कई बार मना किया मैंने तुम्हे

हाथ भी जोड़े और

बच्चो से इशारा भी करवाए

पर तुम लत में अपनी

हमारा सारा जहां लुटा बैठे

रुपये गहने कपडे तो क्या

अपना गुलशन भी तुम गवा बैठे

क्या हक़ था तुम्हे

अपनी उम्र यु गवाने का

अपने साथ साथ हमारी भी

खुशियां साथ ले जाने का

मैंने कहा था तुम्हे

छोड़ दो ये नशा करना

बेवजह खुदको खुद ही सजा देना

क्या ग़म था तुम्हे

हम से जो ना बाँट सके

किसी को बोल न पाए

किसी को समझा न सके

काश के तुमने

कभी बात मेरी मानी होती

ना तो ऐसे हाल होते

न तुहारी ऐसी हालत होती

सो जाओगे तुम

पर नींद हमारी ले जाओगे

जब कभी देर रात तलक

तुम याद हमे आओगे

कोई हक़ न था

तुम्हे मेरे बच्चों को उसके

बाप से जुदा करने का

मांग मेरी धोकर बेवा मुझे करने का

कल रोएंगे बच्चे

तुम्हारे चले जाने के बाद

बड़ी भूल भी जाए

छोटा चिखता रह जएगा  

तुम्हारे लाश को जलाने के बाद

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

 

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Comment

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Comment by AMAN SINHA on March 25, 2022 at 10:28am

@लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

आदरणिय नुसाफिर साहब, 

सराहना के लिये विनम्र आभार स्वीकार करें। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 17, 2022 at 10:23am

आ. भाई अमन जी, अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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