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उम्र  गँवा  दी  लोमड़ी, उछल- कूद  वनवास। 

 ईश  साधना की नहीं, भजन हुआ सन्यास।।

दोहा  कवि को  साध्य है, मूर्ख सदैव असाध्य। 

लंगड़ी  जब  भी  मारता, गिरता ठोकर खाय।।

काव्य - धर्म है साधना, प्राण बसे मम आग ।

साधू - संगति  चाहिए , तुलसी सम अनुराग।।

काव्य - कर्म जागृति जगत, हास्य-व्यंग्य है राग।

कविता  -  गंगा   है    सदा, नवरस का अनुराग।।

काव्यशास्त्र  विलास  कवि, पंडित को ही साध्य। 

तप - काव्य विरल भाव है, मूर्ख  कहाँ आराध्य।।

गणना करिये आयु  की, गणित आप के पास। 

गणित जानते  यदि नहीं, फूल  सूँघिये खास ।।

मौलिक व अप्रकाशित 

प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'

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Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2022 at 9:00am

आपके छक्के ने दमदार अभ्यास दिखाया है, आदरणीय. 

प्रयास जारी रहे. 

शुभातिशुभ 

Comment by Chetan Prakash on February 3, 2022 at 10:46pm

आ . सुशील सरना  साहब , कृपया पुन: देखें । अपेक्षित  संशोधन द्रष्टव्य है !

Comment by Chetan Prakash on February 3, 2022 at 10:43pm

भाई, लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब,  सही  कहा, आप ने, टंकण त्रुटि  हुई  है, असाध्य के स्थान पर  'अघाय' पढ़कर  कृतार्थ करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2022 at 4:59pm

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुन्दर दोहे हुए हैं । हार्दिक बवाई ।

दूसरे दोहे की तुकान्तता के सन्दर्भ में पुनः विचार कीजिएगा । सादर..

Comment by Sushil Sarna on February 1, 2022 at 8:27pm
वाहहहहहह आदरणीय चेतन प्रकाश जी बहुत ही सुंदर और सार्थक दोहावली सर । क्षमा सहित सर अन्तिम दोहे का तुकांत? सादर नमन

कृपया ध्यान दे...

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