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जिसे दिल ने चाहा, मिला ही नहीं...

जिसे दिल ने चाहा, मिला ही नहीं
सिवा इसके कोई गिला ही नहीं

नसीबों में उनके बहारें लिखीं
इधर तो कोई सिलसिला ही नहीं

कहां से महकतीं ये फुलवारियां
कोई फूल अब तक खिला ही नहीं

जड़ें उसकी मजबूत थीं इसलिए
शज़र आंधियों में हिला ही नहीं

यहां भीड़ में भी अकेले हैं सब
मुहब्बत का वो काफ़िला ही नहीं।।  # अतुल कन्नौजवी

                                    (मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Samar kabeer on June 6, 2021 at 3:00pm

जनाब अतुल जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

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