For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल ~ "कलंदर लोग हैं शीशे से पत्थर तोड़ लेते हैं"

1222 1222 1222 1222

कहानी कोई हो अपने मुआफ़िक़ मोड़ लेते हैं

सभी किरदारों से किरदार अपना जोड़ लेते हैं

बड़ी तकलीफ़ देती हैं के चलती हैं ये साँसें भी

बड़े फाज़िल हैं हम भी रोज़ खुशियाँ जोड़ लेते हैं 

ब-ज़िद हैं आस्तीं के साँप डसने को तो डसने दो

बड़े अफ़ज़ल हैं हम भी साँपों के फन तोड़ लेते हैं 

सुना है तुम समंदर हो तो फिर औकात में रहना

हमें भी आते हैं करतब के दरिया मोड़ लेते हैं 

कहाँ हिम्मत पहाड़ों में हमारा रास्ता रोकें

कलंदर लोग हैं शीशे से पत्थर तोड़ लेते हैं 

ख़ुशी हो या हो कोई ग़म सभी मेहमान हैं दिल के

अजब वो लोग हैं जो टूटकर सब तोड़ लेते हैं 

बड़ी शिद्दत से दुनिया राहों में कांटे बिछाती है

बड़े आराम से हम चुभती नोकें तोड़ लेते हैं 

दिवाने पन की अपने भी कोई सीमा नहीं यारो

जुनूँ में ख़ुद ही ख़ुद से ख़ुद का ही सर फोड़ लेते हैं 

हमारा दिल कोई तोड़े तो तोड़े कैसे की 'आज़ी'

ग़ज़ब ही लोग हैं हम ख़ुद से ही दिल तोड़ लेते हैं

आज़ी तमाम

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 462

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Aazi Tamaam on February 13, 2021 at 11:46am

सादर प्रणाम रचना जी

शुक्रिया रचना भाटिया जी मार्गदर्शन करने के लिये अभी ठीक किये देते हैं

कृपया मार्गदर्शन करती रहें

धन्यवाद

Comment by Rachna Bhatia on February 13, 2021 at 10:57am

आदरणीय आज़ी तमाम जी ग़ज़ल पर अच्छा प्रयास किया।बधाई स्वीकार करें।

मतले में सहीह लफ़्ज़ मुआफ़िक़ है ।

दूसरे में तकाबुल-ए-रदीफ़ है।

तीसरे में रब्त समझ नहीं आया।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
3 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
17 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service