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अन्नदाता के लिए -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२१२२/२१२२/२१२२/२१२२/२१२


बाढ़-सूखा सूदखोरी  हर  समय  डर अन्नदाता के लिए
कौन सी सरकार चिन्तित है यहा पर अन्नदाता के लिए।१।
**
हर समय उद्योगपतियों की उन्हें चिन्ता सताती है मगर
खोज पाये संकटों का हल न अफसर अन्नदाता के लिए।२।
*
कर के उद्यम से यहा तैयार उसको नित्य बोता है उपज
मायने रखता नहीं कुछ  खेत  ऊसर अन्नदाता के लिए।३।
*
नित्य भूखे पेट सोता  है  उपज  को वो बचाने खेत में
डालिए मत राह में अब और पत्थर अन्नदाता के लिए।४।
*
खा गयी नहरें  सियासत  कर्ज  ने छीने रहट सब दोस्तो
आ न पायी और बदली भी समय पर अन्नदाता के लिए।५।
*
ये सियासत राख  की  ढेरी  अगर  है तो हमारी है दुआ
आग जन्मे रोज हित में सबके अन्दर अन्नदाता के लिए।६।

मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment by Samar kabeer on December 15, 2020 at 3:38pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'कौन सी सरकार चिन्तित है यहा पर अन्नदाता के लिए'

इस मिसरे में 'यहाँ' के साथ 'पर' का प्रयोग उचित नहीं होता,देखियेगा ।

'मायने रखता नहीं कुछ  खेत  ऊसर अन्नदाता के लिए'

इस मिसरे में 'मायने' कोई शब्द नहीं होता,इसे बदलने का प्रयास करें ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 15, 2020 at 2:13pm

जनाब लक्षमण धामी भाई 'मुसाफ़िर' जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर।

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