मिश्रा जी यूं तो बैंक से रिटायर हुए थे, लेकिन रिटायरमेंट के बाद उन्होंने पूरी तरह से अपने जीवन को वृक्षारोपण के लिए समर्पित कर दिया, इसलिए लोगों के लिए उनका परिचय था " वही जो पेड़ लगाते हैं"। घर के पास स्थित राधा कृष्ण मंदिर में भी उन्होंने कई पेड़ लगाए थे, जब तक उनका लगाया पौधा पूरी तरह से बड़ा न हो जाता, तब तक उसकी देखभाल के लिए जाया करते थे। पार्कों में, रोड साइड पर, अपने स्कूटर पर पानी के जरीकेन रखकर ले जाते थे और पौधों में पानी डालते थे, बाद में पैदल ही जाने लगे। कभी-कभी आसपास के घरवालों को बोल देते थे, लेकिन स्वयं अपने पौधों को देखने जरूर जाते। इसी का परिणाम था कि 10 सालों बाद उनके लगाये बहुत से बेल, नीम, पीपल के पेड़ जगह-जगह छाया दे रहे थे; सड़क किनारे कहीं-कहीं उसके नीचे ठेले, कुम्हारों की दुकानें, किसी प्रेस वाले का खोखा या कहीं रिक्शेवाले खड़े होते थे।
मिश्रा जी का राधा कृष्ण मंदिर जाने का रोज का नियम था; असल में वह भगवत गीता के उपदेश “मनुष्य पर ही देव, पितर, पशु ,पक्षी ,वृक्ष सबकी रक्षा का दायित्व है” इसका पालन करते थे। मंदिर में वह तुलसी के छोटे-छोटे पौधे कुल्हड़ में लगाकर रख आते थे, ताकि किसी को आवश्यकता हो तो वहां से ले जाए। अलावा इसके उन्होंने कुछ गमले भी लाकर मंदिर में रखे थे, भगवान पर अर्पित करने के लिए ताजा गुलाब के फूल मिल सके और मंदिर सुंदर दिखे, इसके लिए उन्होंने वहां गुलाब लगाए।
कई बार ऐसा हुआ कि उनको वह गमला गायब मिला और उसकी जगह दूसरा खाली गमला रखा था, कभी-कभी तो वह भी नहीं। उन्होंने पुजारी जी से जानकारी की, तो पता चला सामने के घर में रहने वाली कोई महिला ऐसा करती थी।
एक दिन तो जब मिश्रा जी फिर से गुलाब का एक गमला मंदिर में रख रहे थे, वही महिला सामने से आई और बोली "अंकल जी मैं यह गमला ले जाऊं इसकी जगह मैं दूसरा गमला रख दूंगी..."
मिश्रा जी के मुंह में बोल न आया, अंतर्मुखी व्यक्ति थे, दूसरे सामने एक महिला थी। मन में कई प्रश्न उठे, पर बिना कुछ बोले घर वापस आ गए। दूसरे दिन जब मंदिर गये, तो फूलों से भरा गमला नदारद, एक खाली गमला उसके स्थान पर रखा मिला।
मौलिक व अप्रकाशित
डॉ वन्दना मिश्रा, लखनऊ।
Comment
आ. वंदना जी, अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई।
मुहतरमा डॉ. वंदना मिश्रा जी आदाब, अच्छी लघुकथा हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
शुभ प्रयास में सहयोग का अपना तरीका। कहानी प्रेरक है। बधाई , आदरणीय सुश्री डॉo वंदना मिश्रा जी , सादर।
आदाब। अप्रत्यक्ष रूप से 'खाली गमलों'के माध्यम से गंभीर बातें कहती बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आ. डॉ. वन्दना मिश्रा जी। विवरण की बातें समुचित कम शब्दों में भी या सांकेतिक रूप से भी कही जा सकती हैं।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online