( 1212 1122 1212 22 /112 )
मज़ाक था वो मगर हमने प्यार मान लिया
कि ख़ुद को तीर-ए-नज़र का शिकार मान लिया
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ग़मों को क़ल्ब का हमने क़रार मान लिया
ख़िज़ाँ के रूप में आई बहार मान लिया
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ख़ुशी ने बारहा इतना दिया फ़रेब हमें
ख़ुशी को ज़िंदगी से अब फ़रार मान लिया
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समझने सोचने की ताब खो चुके हैं हम
दिमाग़ में है हमारे दरार मान लिया
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पिलाई साक़िया ने चश्म से हमें वो मय
हयात भर को चढ़ा है ख़ुमार मान लिया
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कहा किसी ने था-"आसेब इश्क़ का हूँ मैं "
अभी तलक है वो साया सवार मान लिया
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फ़िराक़ आज बिगाड़ेगा क्या हमारा जब
इसे ही हमने सुकूँ की फुहार मान लिया
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विदा के वक़्त कहा यार ने मिलेंगे फिर-
"मुहब्बतों को तुम्हारी उधार मान लिया "
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सलाम अर्ज़ है अहसानमंद भी हैं 'तुरंत '
कि आशिक़ों में हमें भी शुमार मान लिया
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
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