For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चेप्टर -1 - दोहे

चेप्टर -1 - दोहे

निंदा को आतुर रहें, करें नहीं गुणगान
मैल हिया में देख के ,रूठ गए भगवान

मालिक कैसा हो गया ,  तेरा ये इंसान
बन्दे तेरे लूटता , बन  कर वो भगवान


तेरा  अजब  संसार  है,हर  कोई  बेहाल
हर मानव को यूँ लगे, जग जैसे जंजाल


संस्कार  सब  खो गए ,  बढ़ने  लगी  दरार
जनम जनम के प्यार का, टूट गया आधार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 711

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by narendrasinh chauhan on July 4, 2015 at 6:52pm

खूब सुन्दर दोहावाली , हार्दिक बधाई आपको इस प्रस्तुति पर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 4, 2015 at 4:16pm

बहुत सुन्दर दोहावली हुई है आदरणीय सर 

जुझावों पर अमल से दोहे और निखर जायेंगे 

हार्दिक बधाई आपको इस प्रस्तुति पर 

Comment by Sushil Sarna on July 4, 2015 at 11:43am

 आदरणीय  Pari M Shlok जी प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on July 4, 2015 at 11:43am

आदरणीय Ashok Kumar Raktale जी आपने अपना अमूल्य समय देकर जो गणना दर्शाई उसके लिए हार्दिक आभार। सर मैंने 'संस्कार ' की गणना ( सं २ +आधा स १ +का २ +र १ =6 )की थी क्या स्वरहीन व्यंजन पर अनुस्वार (.) के बाद आधे व्यंजन की मात्रा गौण हो जाती है ? अपने मार्गदर्शन से अनुग्रहित करें । हार्दिक आभार। 

Comment by Pari M Shlok on July 4, 2015 at 10:11am
सुन्दर ..दोंहें ..
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 3, 2015 at 11:18pm

जी ! "संस्कार सब खो गए " ५-२-२-३ = १२ मात्राएँ होती हैं. सादर.

Comment by Sushil Sarna on July 3, 2015 at 10:55pm

 आदरणीय   krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on July 3, 2015 at 10:55pm

आदरणीया  MAHIMA SHREE जी प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on July 3, 2015 at 10:53pm

आदरणीय Ashok Kumar Raktale जी दोहों पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति का तहे दिल से शुक्रिया। तीसरे दोहे के प्रथम विषम चरण में मात्रा की चूक हो गई आपके ध्यानाकर्षण का हार्दिक आभार लेकिन चौथे दोहे में मैं आपके इशारे को समझ नहीं पाया। मुझे मात्रा सही लग रही है कृपया स्पष्ट करें ताकि वांछित सुधार किया जा सके। तीसरे दोहे के ये सुधार शायद आपको संतुष्ट कर सके। हार्दिक आभार। कृपया स्नेह बनाये रखें।

कैसा ये   संसार है ,  हर   कोई   बेहाल
हर मानव को यूँ लगे, जग जैसे जंजाल

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 3, 2015 at 10:34pm

आदरणीय  सुशील सरना  जी सादर, दोहों  पर  अच्छा  प्रयास  हुआ  है. तीसरे  और  चौथे  दोहे  के  पहले  चरण  की  मात्राएँ  पुनः जांच  लें. सादर.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
1 minute ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी दोनों सहकर्मी है।"
7 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। कई…"
8 minutes ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मिथिलेश जी, इतना ही कहूँ,   ... ' पहचान पता न चले। बस। ' रहस्य - रोमांच…"
53 minutes ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय उस्मानी जी, लघुकथा की मार्मिकता की परख हेतु आपका दिली आभार। "
56 minutes ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा को मान देने हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय, मिथिलेश जी। "
58 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"उस दफ़्तर में ये अविनाश है कौन? यह संकेत स्पष्ट नहीं हो सका। चपरासी है या बाबू? स्नेहा तो…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"कारण (लघुकथा): सरकारी स्कूल की सातवीं कक्षा में विद्यार्थी नये शिक्षक द्वारा ब्लैकबोर्ड पर लिखे…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सादर नमस्कार आदरणीय। 'डेलिवरी बॉय' के ज़रिए पिता -पुत्र और बुज़ुर्ग विमर्श की मार्मिक…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। लघु आकार की मारक क्षमता वाली लघुकथा से गोष्ठी का आग़ाज़ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"डिलेवरी बॉय  मई महीने की सूखी गर्मी से दिन तप गया था। इतने सारे खाने के पैकेट लेकर तीसरे माले…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। यह लघुकथा पाठक को गहरे…"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service