For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता -01- माछेर झोल भात और कुटनी !

कविता -01- माछेर झोल !

 

जब ओडिशा में

चलें ठंडी हवाएं

तट को छूने  वाली

तब तुम आना मुझे याद

बंगाल में

मैं चख लूँगा

तुम्हारे हाथ की बनी

माछेर झोल !

 

कविता -०२- भात !

 

शहर की टाइल्स लगी चम चम चुहानी में

यूँ तो बनते हैं रोज़ ही कई कई पकवान

पर वो माटी के चूल्हे पर

लकड़ी की आग में बने दाल भात का स्वाद कहाँ उनमें

इस आंच में माँ !

गर्म मसाले हैं तेज़ और तीखे

नहीं है तो बस

तुम्हारी दुआओं की फूंक !

 

कविता -०३- कुटनी !

तुम्हे याद तो होंगी जाड़े की वो सुबहें

जब हम जाया करते थे

खेतों में साग खोटने

तुम्हारी ही पीसी हुई कुटनी के साथ

चने मटर की कोमल सुस्वादु  पत्तियाँ

खोट खोट चुपके  से देती तुम

सखियों से आँख बचाते

तुम्हारे प्रीत का वही स्वाद लिए

आज फिर आई है तुम्हारी याद

और मैं बंद आँखों से महसूस कर रहा हूँ

चने की कोमल पत्तियों का स्वाद

और तुम्हारे आँचल की छाँव

हाँ अब बड़ा हो गया हूँ मैं

पर बहुत सालता है अपने बचपन का

खुद से छिन जाना !!

 

                           - अभिनव अरुण

                               [05052012]

Views: 967

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on May 7, 2012 at 6:15pm
आभार आशीष जी आपतो  हमारे जिले से हैं सो आपको ये शब्द चित्र पहचाने से लगते होंगे .. कविता पसंद करने के लिए धन्यवाद !!
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 7, 2012 at 4:56am

अभिनव जी, नमस्कार!

आपने आंचलिक शब्दों का प्रयोग के साथ माँ की ममता की चटनी बड़े ही सुन्दर ढंग से पड़ोसा है! बधाई!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 6, 2012 at 9:21pm

kya misaal doon aapke kaavya bhav ki 

yaad aagyi roti vo maan ke haath ki

thandi hava ka jhonka yon lahra gaya

bangal ki khadi se khalihaan ka maja aa gaya. 

badhai, mahodaya ji.

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 6, 2012 at 9:14pm

पांडे जी
         सादर, चूल्हे पर बनी माँ के हाथ की अधजली रोटियों और चटनी का स्वाद कोई पकवान भी नहीं दे सकता. सुन्दर रचना. बधाई.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 6, 2012 at 7:31pm

स आंच में माँ !

गर्म मसाले हैं तेज़ और तीखे

नहीं है तो बस

तुम्हारी दुआओं की फूंक !

हाँ अब बड़ा हो गया हूँ मैं

पर बहुत सालता है अपने बचपन का

खुद से छिन जाना !!

श्री अभिनव भईया,

न जाने किन किन गलियों से हो आया आपकी कविताएँ पढ़ते पढ़ते...! बहुत ख़ूब!! :-)



सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 6, 2012 at 7:03pm

अभिनव अरुण जी बहुत सुन्दर कोमल एहसास बचपन की याद दिलाती ,माछेर झोल भात ,कुटनी ,  व्यंजनों का सुन्दर स्वाद दिलाती हुई रचना.बहुत खूब.बधाई आपको .

Comment by आशीष यादव on May 6, 2012 at 5:40pm
वाह अरूण सर, एक ही बार मे तीन दर्शन।
माछेर झोल, भात और कुटनी।
जहाँ दूसरी कविता माँ के हाथ का खाना याद दिलाती है वहीँ तिसरी कविता हमे माघ-फागुन महिनोँ के गाँव व खेतोँ के दर्शन कराती है।
अत्युत्तम कृतियाँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service