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अवलम्बन (लघुकथा)

'भीड़' से हासिल अपने अनुभवों के मुताबिक़ मरियल से बुज़ुर्ग मियां-बीवी अपने कटोरे लेकर बहुचर्चित धरने वाली जगह पर कुछ मिलने की उम्मीद से पहुंचे। काफी देर तक भीड़ और अपने खाली कटोरों को ताकते हुए वे मंचीय भाषण सुनते रहे। फिर निराश होकर वहां से लौटने लगे।
"चलो मियां, किसी बड़े मंदिर या गुरुद्वारे की तरफ़ चलते हैं!" अपनी अधनंगी से पोती को गोदी में लेते हुए बीवी ने शौहर से कहा।
"हां चलो, वहीं धरना देते हैं! भूखे रहने और बोलते रहने पर भी इनकी  कोई नहीं सुनता!" शौहर ने भूखे पेट आगे क़दम बढ़ाते हुए कहा।
"ऊपर वाले पर भी इनका भरोसा ख़त्म! बड़ी-बड़ी बातें करवा लो, बस!"
"हमारी ज़रूरतें, प्यास और भूख तो बस ऊपर वाले को दिखाई देती है। वही आसरा है; बिना भाषण दिए वह हमारी सुन लेता है।" बीवी के कंधे का सहारा लेकर शौहर ने कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Neelam Upadhyaya on April 9, 2018 at 12:14pm

आदरणीय उसमानी जी, नमस्कार । यही वास्तविकता है । एक जरूरतमन्द की जरूरत देखने-सुनने का समय किसी के पास नहीं है । अच्छी लघु कथा के लिए बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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