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परोथन – लघुकथा -

 "अरे छुटकी, देख तो कौन है दरवाजे पर"?

"कोई भिखारिन जैसी लड़की है अम्मा"।

"बिटिया, एक कटोरा गेंहू दे दे उसे”|

“अम्मा, वह तो बोल रही है कि उसे केवल आटा ही चाहिये”।

"अरे तो क्या हुआ छुटकी, एक कटोरा आटा ही दे दे बेचारी को"।

"पर अम्मा, आटा तो एक बार के लिये ही था तो सारा गूँथ लिया"।

"एक कटोरा भी नहीं बचा क्या"?

"ऐसे तो है, एक कटोरा, पर वह परोथन के लिये है"।

"अरे तो वही देदे मेरी बच्ची। हम लोग एक दिन बिना परोथन की, हाथ की रोटी खा लेंगे"।

"अम्मा, हमारे से नहीं बनती बिना परोथन की रोटी। हम केवल परोथन वाले फ़ुलके हीबना पाते हैं"।

"कोई बात नहीं बिटिया। आज हम बना देंगे हाथ की रोटी"।

"पर अम्मा, आपको तो चूल्हे पर ज़मींन पर बैठने में घुटना दर्द करता है"।

"एक ही दिन की तो बात है , झेल लेंगे थोड़ी तक़लीफ़"।

"पर उसको आटा देना इतना ज़रूरी है क्या"?

"हाँ बिटिया, नवरात्रे में दरवाजे से कोई कन्या खाली हाथ लौट जाय तो अशुभ होता है"।

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on September 27, 2017 at 12:20pm

हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सरना जी।

Comment by नाथ सोनांचली on September 26, 2017 at 8:09pm
आद0 तेजवीर जी सादर अभिवादन, बेहतरीन संदेशपरक लघुकथा, मन को छू गयीं। बधाई स्वीकार करें। सादर
Comment by Nita Kasar on September 26, 2017 at 7:33pm
डर नही ये मन की धारणा है,जो आग्रह करती है थोड़ी तक ीफ झेली जा सकती है पर दर से कोई भूखा ना जाये ।सार्थक संदेश देती कथा के लिये बधाई आद० तेजवीर सिंह जी ।
Comment by Sushil Sarna on September 26, 2017 at 7:22pm

"हाँ बिटिया, नवरात्रे में दरवाजे से कोई कन्या खाली हाथ लौट जाय तो अशुभ होता है"।वाह आदरणीय तेज वीर सिंह जी बहुत सुंदर और उम्दा तरीके से आपने सृजन के अंतर्भाव को अंजाम दिया है। इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 26, 2017 at 6:59pm

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।आदाब।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 26, 2017 at 6:55pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 26, 2017 at 6:54pm

हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।आदाब।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 26, 2017 at 6:53pm

हार्दिक आभार आदरणीय कल्पना भट्ट जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 26, 2017 at 6:52pm

हार्दिक आभार आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 26, 2017 at 6:50pm
केवल अशुभ के भय से इतने आग्रह, इतने समझौते! तीखे कटाक्ष के साथ बेहतरीन सृजन के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी। ऐसा त्याग हम सामान्य दिनों में भी काश कर पायें!

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